कभी दर्द मेरे कभी तकलीफ मेरी,
बयां की है बार-बार देख जुबां ने मेरी,
डुबाई देख तुने है
उम्मीद की कस्ती बार-बार मेरी,
कैसे करूं और भरोसा तुझपे,
देखी है मेरे मेरहरबाँ मैंने मेहरबानी हरबार तेरी,
जीद्दी देख हूं बहुत मैं और,
जीद पकड़कर बैठी हुई है हिम्मत भी मेरी,
लड़ रहा हूं रोज होंसलों संग जीवन के आंधी तुफानों से,
यही है अब देख रोज की जीवनशैली मेरी,
न हिन्दू न मुसलमान,
पहचान सिर्फ हो इंसानियत की तेरी मेरी,
राष्ट्र से देख बढ़कर नहीं कोई है धर्म मेरा,
न हो मुल्क से बढ़कर कोई इबादतगाह तेरी,
मैं भी बैठकर शांति संग भजन कीर्तन कर लूं मेरा,
तूं भी बिन शोर किये सुना दे उसे अजान तेरी..✍️आनन्द"
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