अपने बदन की...
सारी गिरहें खोल कर...
तेरे बाहों में...
हल्का होना चाहता हूंँ...
तेरे बदन के हर...
एक हिस्से को स्पर्श कर...
तेरे गर्म सांसो की आंँच में...
पिघल जाना चाहता हूंँ...-
मैं लिखूं कोई कविता,
तुम मुझे शब्द दे जाना।
ना बन सके इतना...
विस्तृत वर्णन करू जिसका
वो तर्कयुक्त मुहूर्त दे जाना।
मैं कहूं कोई ग़ज़ल नज़्म,
तुम मुझे अल्फ़ाज़ दे जाना,
न काफी इतना के...
मदभरी महफ़िल में तुम,
एक मरमयी गीत दे जाना।
जब छेड़ूं कोई राग गीत,
तुम मुझे धुन दे जाना।
ना हो सके तो बस...
मेरे गीतों का मुझको,
नमालूम सा मर्म दे जाना।
मेरी बनाई तस्वीरों में,
तुम कोई रंग दे जाना।
और ना दे पाओ तो...
रंगहीन कलाकृतियों का,
सृजनात्मक वर्णन दे जाना।
जब थककर बैठ जाऊं कभी,
तो तुम आराम दे जाना,
मुमकिन ना हो तो बस...
माथे पर सनेहयुक्त स्पर्श,
और थोड़ा वक्त दे जाना।-
विर्द तेरा ही करती है जुबां "अंजुम",
हिफ़्ज़ अब मैंने, तेरा नाम कर लिया..-
दो खाली सटे डिब्बों से रिश्ते जो हाथों के स्पर्श से बज तो उठते हैं पर भीतर से खाली रह जाते हैं....
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रहो मेरी नज़र की शुआओं में 'मेरी जाँ',
मुख्तलिफ हो तुम,तुम्हारी है बात अलग..-
तेरे इश्क़ की आग में मेरा हर
राज़ दफ़न हुआ
क़फ़न सा दिल था, तेरे स्पर्श
पा के ये बस तुझीमें
ही मगन हुआ।।-
हमारे सारे गम मोम से पिघल जाते हैं,
जब आप मुहब्बत भर के निगाहें मिलाते हैं।-
जुबां से कहती नहीं कुछ, निगाहों से बात करती है
हाथों से स्पर्श नहीं कुछ , इशारों से छेड़छाड़ करती है
मुझे बस यही एक बात उसकी ,बेहद परेशान करती है-
मुझे याद है वो पल जब मेरे जीवन में तुम्हारे आने की सूचना मिली थी। शब्द तो नहीं मेरे पास जो बयान कर पाए उस एहसास को, फ़िर भी तुम वो अनुभूति थे,जो मैं आज भी महसूस करती हूँ। वो महीनों का लम्बा इंतज़ार, मानो हर पल सदियों-सा बीत रहा था। जैसे-जैसे तुम्हारे आने की घड़ियाँ नजदीक आ रही थीं, मेरा दिल एक अनजानी ख़ुशी और एक अलौकिक भय से धड़क रहा था। आख़िर मेरा इंतज़ार ख़त्म हुआ और तुम आए। हजारों पुष्प एक साथ खिल उठे। मंदिर के पावन घंटियों-सा तुम्हारा क्रंदन.. मुझे बहुत सुकून दे रहा था। मैं तुम्हें देख रही थी, तुम्हारे छोटे-छोटे नन्हें पाँवों को। आख़िर तुम मेरी बाहों में थे। तुम्हारा वो पहला स्पर्श....नन्ही-नन्ही ऊँगलियों से तुम्हारा मुझे छूना, शब्दों से परे है। उस अनुभूति को मैं , सिर्फ़ मैं महसूस कर सकती थी। एक नारी से माँ तक के सफऱ में, तुम मेरी मंज़िल बने। मेरे बच्चे, तुमने मुझे पूर्ण किया।— % &
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