I moved on
I could changed my attitude
I could also changed my habits But.....
I couldn't change my feelings which is only for you.
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Sometimes I just want to hug someone ,
the one who cares about me who hold my hand & say I'm with you so you can cry ....
I'm always be there to wipe away the tears
I'm always be there to slap you on your mistakes & always be there to support you when you faced down falls....
Who is not promises me to " forever " but who never ignore the changes of my behavior ....
Who always notice my eyes which is speak so loudly , the one who listen this sound very clearly.....
but who is this one ?
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मेरे प्रियतम की वो पहचान ना पूछो
मेरे दिल की खूबसूरत पहचान ना पूछो ,
शब्दों में कहाँ तक पिरोया जाए उसके अभिव्यक्ति की शान ना पूछो,
मैं क्या लिखूं उसे कि एहसासों का शब्दों में कोई बखान ना पूछो।
इस दिल से धड़कन की आवाज़ ना पूछो ,
प्रियतम के चंचल नयन अंदाज ना पूछो ,
सुमधुर वाणी, कोमल होंठों पर आए अल्फाज़ ना पूछो।
अधरों पर मंद हँसी, मनमोहन मुस्कान ना पूछो ,
सादगी से सज़ा, खूबसूरती से उसका ज्ञान ना पूछो ,
हर घड़ी ख़ुद में उलझा, सुलझी डोरी से उसका नाम ना पूछो।
हाय! रूठने से चेहरे पर नाराज़गी की बहार ना पूछो,
चुप्पी साधे खड़ा हो जब कुर्बत के मौके हज़ार ना पूछो,
तमाम सवालों से परेशान, दिल की बात हर बार ना पूछो।
हर दिन उसकी बाँहों में होती सुबह का अक्सर ख्वाब़ ना पूछो,
एहसासों की अनुभूति में इश्क, मोहब्बत के जबाव ना पूछो,
नजरें उससे मिल जाती, तब मेरे होते गाल गुलाब ना पूछो।
मेरे प्रियतम की वो पहचान ना पूछो...-
You don't deserve someone who come back , you deserve someone who never leave.
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संवाद...
मैं : ( अचानक) मैं बहुत लड़ती हूं ना तुमसे !
वो : बहुत नहीं , बहुत ज्यादा कहो।
मैं : अच्छा जी !
वो : ( हास्य-व्यंग्य भाव के साथ ) हाँ जी !
तुम जब लड़ती हो तो अपनापन महसूस
होता है। कभी कभी मैडम...
मैं : ( शरारतभरी मुस्कुराहट के साथ )तो हक़ है
ना मेरा मेरे दोस्त पर ...
वो : पूरा हक़ है तुम्हारा... बल्कि मैं तो कहता हूँ
तुम एक हक़ मुझे भी दे दो ....
मैं : कौन सा हक़ ?
वो : ( बातें गंभीर रुख़ की ओर बढ़ती हुई )
तुमसे हमेशा लड़ने झगड़ने का हक़.....तुम्हें प्यार से मानने का हक़....
मैं : ( एक हिचकिचाहट के साथ ) तुम जानते हो ना मैं.......
वो : ( बीच में बात काटते हुए ) अरररररे .... तुम तो सोच में पड़ गई
मैं तो इस दोस्ती की बात कर रहा था....-
हर तस्वीर में एक लम्हा कैद है
हर लम्हे में कैद हैं कुछ खट्टी मीठी यादें,
वो यादें जो साक्षी है उन आधे-अधूरे किस्सों की,
उन प्रेम मिलन के रिश्तों की
उन हिस्सों की जिनका अस्तित्व प्रकृति में समाहित है
इस रंग बिरंगे जीवन के पन्नों पर ,
जहां तस्वीरें निर्जीव होकर भी लम्हों को सजीव बता देती हैं-
एक संवाद
वो : हम इंतेज़ार करेंगे एक दूसरे का जब तक किस्मत हमें ना मिलाएं।
मैं : हां , हम इंतेज़ार करेंगे ,... पास ना सही पर साथ हैं हम हमेशा।
क़िस्मत : सफ़र तुम जी नहीं रहे , और मंजिल तुम्हें मिलेगी नहीं।-
मन के मेघ...
मेरे मन के उमड़ते-घुमड़ते मेघ बाहर आंगन में हो रही बेपरवाह बारिश का भी विध्वंश कर रहे थे। ये निर्जीव बूंदों की ध्वनि मेरे हृदय में बसे प्रेम को सजीव बता कर जोरों सोरों से मेरा तिरस्कार कर रही थी और साथ ही मेरे प्रत्येक संकल्प को एक करारा चांटा मार कर मुझे याद दिला रही थी उन वादों का जो बिते दिनों मैंने स्वयं से किये थे। आकाश में मेघ अपनी मनमानी करते हैं उसी तरह मन में उमड़ रहे मेघ को मैं जितना सीमित करने की कोशिश कर रही थी वो उतने ही अधिक भयावह रुप लेते जा रहे थे, क्या ये उस प्रलय के आजाऱ थे जिसके अस्तित्व को मैं हर दिन नाकार रही थी। आकाश के मेघ, धरा को उस चरम सुख से साक्षात्कार कराते हैं जिसकी अभिलाषा साल भर धरा को रहती है किन्तु मेरे मन के मेघ केवल और केवल मुझे असहनीय पीड़ा ही देते। कितनी खूबसूरत होती है ना इस बारिश की वो नन्ही नन्ही बूंदें, जो स्वयं में धारण करती हैं असीम शीतलता को, असीम निर्मलता को जो अनन्त शुकून दे। फिर क्यों प्रत्येक दिन मन के मेघ मुझे उस काली घनेरी तबाही के रुप में दिखाई देते हैं?यही नन्ही बूंदे जब अपना एक नया स्वरूप बदलती है एक नए स्वरूप में ढ़लती हैं तब अथाह निर्मल कोमल सा हृदय डूब जाता है उस असहनीय पीड़ा में जहाँ मेघरुपी वेपरबाह होकर भाव छलक उठते हैं नयनों की उस गली में जहाँ द्वंद विनाशकारी बनकर युद्ध का शंखनाद उठा लेता है।
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