मेरे हक़ की लड़ाई कौन लड़ने आएगा?
मेरे मज़हब का आखिरी मसीहा भी आ कर चला गया।
-
नर से भारी नारी
""""""""""""""""
हां! वो एक स्त्री है
जो पुरूषों के समकक्ष खड़ी है
मगर आज भी कुछ लोग उसे
समझते समाज की बेड़ी हैं...
नज़रें समाज की पहले से
और भी ज़्यादा बिगड़ी हैं
लिबास उन्हें कम लगते हैं
चाहे वो बुर्क़ा साड़ी है...
इतिहास उठाकर देखो तुम
अधिकारों के लिए वो लड़ी है
समाज ने कितना भी रोका
संघर्ष कर वो ख़ुद खड़ी है...
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं
जहां स्त्री आज ना पहुंची हो
पुरूषों की तरह वो भी
बल - बुद्धि में बड़ी है...
तुम कितनी भी कोशिश कर लो
पर तुमको मुंह की खानी है
तुम भूल गए हो आज भी शायद
नर से भारी "नारी" है....!-
Equality (Right to Equality)
Ek baat btao kitne aise ladke hain jinki mummy ne ya behan ne ye sikhaya tha ki ladkiyon ki izzat karni chahiye, unhe gaaliyan nahi deni chahiye, ladkiyon ko marna nahi chahiya...
Pata hai kya meri mummy ne mujhe kabhi ye nahi sikhaya ki ladko ki izzat karni chahiye... Kyun? Ladko ki izzat nahi hoti? Ladko ki koi feelings nahi hoti?
Equality matlab dono ko ek barabar samjho. Jitni izzat ek ladki ki hoti hai utni he ladko ki bhi hoti hai.. bas baat hai use samajhne ki or samjhane ki.
-
मर्दों के समाज में औरत तो एक खिलौना है
संविधान देता है औरत को कंधे से कंधा
मिलाकर चलने का हक
जल्दी से उस संविधान की भी गर्दन मरोड़ना है
-
क्या खुब चोला पहना हैं किसी ने-----
विदेशियों का राज हटा कर पुरूषों का
राज बैठाया है किसी ने-----
निगाहें चाहे गन्दी हो किसी का भी
सर झुकाना औरतों को ही सिखाया है सबने
तु ऊँचा बोल नहीं सकतीं,तु रेखाएँ पार नहीं कर सकती,तु ये नहीं कर सकती,तु वो नहीं कर सकती----इन सारे नियमों से बंधा है किसी ने
भले जन्में हम एक ही कोख से जाते हैं
पर जाने क्यूँ परिवार के इज्जत का बोझा हमेशा खुद के कन्धों पर ही पाते हैं??
औरतों को दो घरों की जिम्मेदारी तो दे दी है सबने
पर जाने क्यूँ दुनिया के सारे इल्जामो के हकदार भी बना दिया सबने------
-
मेरी भारी आवाज का तुम किस्सा हो
मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हो
हर पल मिलती बिझड़ती मुझसे
जैसे दुल्हन के तन का गहना हो
और रूठ चली जिधर भी पांव चले
जैसे पूरा रास्ता उसका अपना हो
मैं तो थम सा गया उसकी चाल देख के
जैसे मेरे दिल पे पड़ा कोई पत्थर हो
अब होंठ मेरे ठिठुर से गये हैं
जैसे मेरे होंठो को सर्द लग सी गयी हो
ना कर हिमायत इतनी कड़वी
जैसे दिल की तम्मना भर ही गयी हो
आ अब लौट के उस रात से
की दिन का सूरज उग गया हो
अब बस भी कर सितम तेरे
जैसे कोई तेरा अपना रहा ही नही हो
मेरी भारी आवाज का तुम किस्सा हो
मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हो-
The dark hands trembled,
veins below the thin skin;
dry eyes searching into the sky
hoping for rains that may
wash away their 'original sin'.
There will be light one day
at the end of this tunnel,
where they are the outcastes and
pariahs in the men's jungle.
-
Pretty,
Beautiful,
Handsome...
These are just words...
Not genders...!-