Kya likhe kyaa Naa likhe
Ye kaisi mushkil Bhai...-
सीखने को कुछ नहीं
सूखता यूं जा रहा
खड़ी नदी तालाब सी
ख़ुद से रूठता यूं जा रहा
सीख कुछ सीख ने को
मिल जाए कुछ लिख ने को
कुछ न आए संज्ञान मेरे
फिर भी लिखता मैं जा रहा..
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लिख रही है लेखनी जवाब क्या दू
बस रही मोहब्बत ख्वाब क्या दू
इबादते सरोज की , मैं राज़ क्या दू
खुश हूं अब ख़ुद में , तुझे लिबाज़ क्या दू
हैं पड़ी लेखनी यू भीड़ में सिमट कर
मेरी सब्र में तेज़ तुझे तलवार क्या दू
भेद देगी हर एक ज़ख्म ये बता इलाज़ क्या दू
रंग नूर हिमाकत हैं ये जो बोल मीठे सांवले
हर चीज़ के हैं जिक्र और तुझे खगाल क्या लू
ऐ ! मोहब्बर मुहब्बत से बचा ले ,
वो कहे फसाने की " बोल तुझे चाल क्या दू.."-
क्यों ? लगती हवाएं बेहकी बेहकी मुझे
क्यों ? तेरे हवाले से नज़र ना हटे
क्यों ? फ़ोन पर ध्यान अक्सर मेरा
तेरे message का इंतजार मुझे अक्सर रहे !-
अरे नज़रे झुकाएं , कब तक चलेंगे
आख़िर नज़रे तो आसमां को उठानी पड़ेंगी
चमकते सितारे हैं , टिमटिमाता देख रो मत देना
मुझे वापिस लाने को अब कई पलके भिगानी पड़ेंगी ।
// मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के
ए मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के //-