बड़े लंबे वक्त के बाद उनसे फिर मुलाकात हुई,
थोड़ी बात तो हुई,
पर पहले जैसी मुलाकात नही हुई
नैन मिले अस्क भये और अधुरी सी बात हुई ..-
निराश हैं जिन्दगी से सोचते हैं मर जाएँ हम,
मरना गर कायरता है, तो बोलो किधर जाएँ हम?
एक-एक कर टूट रही मोतियाँ मेरे धैर्य की,
यही क़ायम रखें, या एक पल में ही बिखर जाएँ हम?
देख रहे हम ख़ुद का चेहरा हँसी के रंग से उतरते,
क्या क़फ़न से लिपट कर, सारे रंगों से बिछड़ जाएँ हम??
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नहीं बांधा जा सकता है भावनाओं को शब्दों की सीमा में
यह तो वक्त - वक्त पर आंखों से दरिया बनकर निकल ही जाता हैं...-
आज फिर मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा
जिंदगी ने एक बार फिर निराश किया ।।-
फिर व्याकुल अशांत है मन
बरबस करता सवाल है मन
खौफजादा और परेशान हैं मन
खुद पर ही हैरान है मन
असहज और निराशा हैं मन
बन गया बेबस लाचार है मन
भविष्य को सोच बेचैन है मन
वर्तमान से पूछता सवाल है मन-
Aye rab kaysi ye chot khai hai
Jo ada apno me dhundi thi
Vo shafakkat gairo se pai hai-
कर्म करना मेरा काम है
फल देना ईश्वर का काम है
अगर व्यक्ति स्वयं ही अपने
कर्मो से कोई उम्मीद ना लगाए
तो उसे कभी कोई निराशा मिलेगी ही नहीं
क्योंकि कर्मो से उम्मीदे लगाना ही निराशा
का कारण बन जाता है।-
Hum tadap te rahe unke liye
Aaj nhi toh kal
Vo shabd sunne ko milenge
Par unhone kabhi samnese kaha he nhi
Abb unko samghaneki jagah
Hum khud samagh gaye
Unke jindegise khud he hatt gaye.-
असफलता बाद में जान लेती है
निराशा और हताशा मनुष्य को पहले मार देती है-