मैं क्या करू
तुम बात भी तो नहीं करती ....
जज़्बातो को नज़्म में
कर दिया करती हो बया
मुझसे ना-तमाम सा
इजहार क्यों नहीं करती ...
और मैं क्या करू
तुम बात भी तो नहीं करती ....
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मेरी नजरों को जो गुमान सा था,
कि वो मेरे सपनों का आसमान सा था।।।
दो क़दम क्या चले वो ख्वाब सो सा गया,
नींद से जागे तो वो आसमान भी खो सा गया।।।
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मैं आ लिखू, तू आ जाए
मैं बैठ लिखू, तू आ बैठे
मेरे शाने पर सर रखे तू
मैं नींद कहू, तू सो जाए ..
चल आ एक ऐसी नज़्म कहू,
जो लफ़्ज़ कहू वो हो जाए
मैं गुम लिखू तू खो जाए
मैं दिल लिखू तू बन जाए
मैं इश्क़ लिखू तुझसे हो जाए ...-
Ab kise chahein kise dhunda karein
Woh bhi aakhir mil gaya ab kya karein,
Baahar halki halki baarish hoti rahe
Hum bhi phoolon ki tarah bhiga karein,
Nain munde is gulaabi dhoop mein
Der tk baithe use bas use socha karein,
Dil, mohabbat, deen duniya, shayari
Har dariche se, unhe hee dekha karein.-
आज फिर खुद अपनी ही याद दिला के मुझे रुला दिया !
वो है एक शख्स जिसने बरसो पहले ही मुझे भुला दिया !-
हम अपने लुब्ध मन के कारण अपने भोजन को कचरे में फेंक देते हैं और हमारा यह कचरा भी किसी की भूख मिटा जाता है।
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वो अतीत के पन्ने जब भी पलटते है
आंसुओ को पलको मे समेटते है
आज खामोश है जो लब्ज मेरे
कभी इसपे तेरे बातो से
मुस्कान हुआ करता था
तुमसे मिलने पर ये दिल
हर गम से आजाद हुआ करता था
एक तुम ही तो थे
जिसे बेवजह बात हुआ करता था-
"कल्पनाएँ "भी बड़ी अजीब होती हैं,
शुरू हमेशा इक "हकीकत" से ही होती हैं ।-