ख़ुदा जाने कैसे गुजरेगी रात कि वो नहीं आए
हाय कितनी बोझिल हैं शाम ओ सहर के साए
सितारे भी, झुकाये हैं अपना सर, नाकामी पर
शौक से गए थे वो चाँद लाने, पर ला नहीं पाए
ये आसमाँ भी ना बड़ा निष्ठुर है, रोता भी नहीं
उसे क्या पता कि किसने, कितने आँसू बहाए
खुदारा, बहुत परेशान है, सुबह की किरणे भी
वो कहाँ है, किसके चाह मे भला, मोती लुटाए-
विरहिणी बनी धरा की, तन मन में जा समाई है
मेघों ने मानों झूमकर, धरती की प्यास बुझाई है
हरियाली और प्रेम का बना हो जैसे संगीत नया
छम-छम बूँदे बरखा की, गीत नया लेकर आई है!-
कोशिश तो बहुत करती है, पर वो तन्हा रह नहीं पाती है
कहना तो दिल खोल के चाहती है, पर कह नहीं पाती है
एक समय था, जब न मंजूर दूर दूर तक कोई सौतन उसे
अब, दिल मसोस कर रह जाती है, भले सह नहीं पाती है-
उफ्फ, फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहे हम
खून ए दिल होता रहा यारों, मगर देखते रहे हम
हमे लगता था कि आज भी वो हमारे ही हैं यारों
गलतफहमी साबित हुई तो, डगर देखते रहे हम-
अब ऐसा भी नही कि, दिन नहीं ढलता है या रात नही होती,
लेकिन, सब अधूरा सा लगता है, जब तुमसे, बात नही होती,
अफ़सोस कि, देख कर तेरी रुस्वाई, आँखें भर जाती हैं प्रिये,
ये अलग बात है कि मेघ तो उमड़ते हैं पर बरसात नहीं होती!-
महफिलों में भी वो और तन्हाइयों में भी वही रहा करती है,
क्या 'इश्क़' की हर घडी में, ऐसे ही मोहब्बत बहा करती है।-
नदी के बहते पानी पे, हंसता बुलबुला है ज़िंदगी
हादसों का एक मुसलसल, सिलसिला है ज़िंदगी
ना आना अपने हाथ में, ना जाने की कोई ख़बर
नियमत है तो, ये किसी के लिये गिला है ज़िंदगी
कभी नज़ारे, कभी चाँद सितारे तो कभी है बहार
तो कभी क़यामत का रूबरू जलजला है ज़िंदगी
ना दिल ही अपने हाथों में ना ख़्यालों का ही डोर
तो भूखे के हाथ लगी, ख्याली गुलगुला है ज़िंदगी
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मुद्दत गुज़र गयी कि, यह आलम है मुस्तक़िल
दर्द का कोई सबब नहीं है मगर उदास है दिल
मुमकिन नहीं कि, मिलके सजाएँ जहाँ अपनी
ख़्वाबों ओ ख़्यालों मे ही सही, आके तो मिल-
आनंद रूपी सागर में ही, तुम्हारी जीवन की कश्ती हो
तन वही स्पर्श करे सदा, जिस हवा में खुश्बू बसती हो
तेरे जन्म-दिन के पन्नों में बस, सुख से भरी कहानी हो
हर इक साल ये दिन आए जब तक समंदर में पानी हो
सदा घर आँगन गुलज़ार रहे, दामन में बस अच्छाई हो
मेरे हृदय के तल से जन्मदिवस पर बारम्बार बधाई हो
सबका, स्नेह प्यार मिलता रहे, हर एक बात अमल हो
हर पल मन हर्षाए जैसे झील में हँसता हुआ कमल हो
कभी भाग्य तुमसे खफ़ा नहो जायज़ ख्वाहिशें पूरी हो
तेरे चेहरे पर हो नूर सदा ही, तेरे 'अपनों' से ना दूरी हो— % &-
यहाँ जाऊँ, वहाँ जाऊँ, उसे भूल ना पाऊँ
चाहे जहाँ जाऊँ
अब तु ही बता ऐ मेरे ख़ुदा कि क्या करूँ
और कहाँ जाऊँ-