कातिल कातिल चिल्लाती उन नन्ही नन्ही आँखों ने,
बेच दिए सपने अपने थे चंद अन्न के दानों में,
रोती रोती चिल्लाती वो कोमल मन की आवाजें,
बदल रही हैं क्रोध में उसको ये समाज की दीवारें,
वो रुमाल से अपने हाथों से जब खाना खाता है,
आँसू उसके पच जाते हैं जब वो नींद में जाता है,
हर सुबह नई उम्मीद लिए वो फिर से काम पे जाता है,
एक मासूम सा बच्चा देखो कब वयस्क बन जाता है।
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