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रहमत,नेमत,बरकत है घर की बेटियां,
और मैं जहेज़ में तुझ को क्या क्या दूं !!
رحمت,نعمت,برکت ہے گھر کی بیٹیاں..
اور میں جہیز میں تجھ کو کیا کیا دوں !!-
मैं कैसे कहूँ इश्क़ में बात जिस्मों की होती नहीं,,
बात रूह की होती तो तुलना चाँद से होती नहीं,,
ना सुनती वो ताने किसी से कम खूबसूरत होने का,,
अपनी सहलियों के बीच में वो यूं सहमी होती नहीं,,
ना चलता कारोबार फिर ये मेकअप के रहीशो का,,
कोई माँ को फिर साँवली बेटी की चिंता होती नहीं,,
ना होती फ़िक्र किसी भी बाप को बेटी के रिश्ते की,,
कोई बेटी रिश्ते के इनकार से छिपछिप के रोती नहीं,,
ना होता बोझ दहेज़ का किसी भी पिता के कांधे पर ,,
किसी भी माँ बाप की आँखे फिर रात भर रोती नहीं,,
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zindagi कीमती है ,या dahej ??
क्या है ना ,
आज एक बाप ने अपनी zindagi सौंप दी, और लोग पूछ रहे थे
"dahej me kya hai"-
मेरे आँखों के सामने ही मेरा जनाजा उठाया जा रहा था,,
फर्क ये था दहेज़ देकर अर्थी को डोली बुलाया जा रहा था,,-
एक बच्ची ने अपने पापा से पूछ ही लिया
कि पापा आप मुझे दहेज़ में क्या क्या देंगे?
दहेज़ भी दे दिया अपनी बिटिया भी दे दी ये कैसा रिवाज़ है?
अपने बेटे की बोली लगा कर उसे बेच देते है ये कैसा समाज है?-
आज पहली बार किसी सामाजिक मुद्दे पर मैंने कोई रचना लिखी है उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी...
😭शीर्षक😭
दहेज एक अभिशाप...
मरणोपरांत मेरा एक लड़की से संवाद...
Plzzzz read this full poem in caption...
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माँ-बाप का घर बिका तो बेटी का घर बसा...!!
कितना अजीब फ़लसफ़ा है ”रसम-ए-दहेज़’ भी...!!-