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रहमत,नेमत,बरकत है घर की बेटियां,
और मैं जहेज़ में तुझ को क्या क्या दूं !!
رحمت,نعمت,برکت ہے گھر کی بیٹیاں..
اور میں جہیز میں تجھ کو کیا کیا دوں !!-
zindagi कीमती है ,या dahej ??
क्या है ना ,
आज एक बाप ने अपनी zindagi सौंप दी, और लोग पूछ रहे थे
"dahej me kya hai"-
एक बच्ची ने अपने पापा से पूछ ही लिया
कि पापा आप मुझे दहेज़ में क्या क्या देंगे?
दहेज़ भी दे दिया अपनी बिटिया भी दे दी ये कैसा रिवाज़ है?
अपने बेटे की बोली लगा कर उसे बेच देते है ये कैसा समाज है?-
आज पहली बार किसी सामाजिक मुद्दे पर मैंने कोई रचना लिखी है उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी...
😭शीर्षक😭
दहेज एक अभिशाप...
मरणोपरांत मेरा एक लड़की से संवाद...
Plzzzz read this full poem in caption...
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माँ-बाप का घर बिका तो बेटी का घर बसा...!!
कितना अजीब फ़लसफ़ा है ”रसम-ए-दहेज़’ भी...!!-
प्रेम के बंधन में बंधी थी,
एक नई दुनिया बसाने अाई थी,
परन्तु पैसों की लालसा ने ऐसा जकड़ा,
कि चार दिन भी चैन से ना जी पाई थी।।।
कभी हाथ उठा, कभी खाना न मिला,
चंद पैसों की लालसा ने,
इस प्रेम के बंधन को ताक पर रख दिया।।
मां को सब बातें बताए,
तो समाज के डर से वह चुप हो जाएं,
"बस कुछ ही पल और मेरी बच्ची",
यह बोल, सोने को कहा जाए।।
पिता के साथ पैसों की तंगी देख,
उनसे कुछ कह न पाए।।
छोटी से तो कुछ बोल भी न सकती,
यह सोच कि होगा उसका भी विवाह,
कहीं उसका इन रिश्तों से ही भरोसा न उठ जाए।।
सहती रहती हर एक जुल्म,
परन्तु वो पति के घर का आंगन न छोड़ती,
ये सोच, कि कहीं ये समाज,
उसके माता पिता की परवरिश पर ही उंगली ना उठाए,
है अभी छोटी बहन भी घर में,
कहीं उसकी ज़िन्दगी पर भी असर न पड़ जाए।।।
भोर होते ही उठ कर,
फिर वह ज़ुल्म सह रात को सो जाए।।
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आँगन बदलती है दहलीज़ बदलती है
हर हाल में अपना ज़ब्त आज़माती है,
आख़िर बेटियां किस मिट्टी से बनी है
टीस होती है लेकिन वो मुस्कुराती है।-