हाँ पहले कहने से डरता था वो
सच बेज़ुबान की साँसें इतनी लड़खड़ा रही है
बड़ी घुटन सी है उसकी शोर में लबलबाती
अब उसकी ख़ामोशी इतनी शोर मचा रही है-
ख़ामोशी से हुई इश्क़ में चार चाँद लगता है
बोलने से यहाँ बस अहल-ए-हर्फ़ बेपर्दा होता है
सुनी राह रौशन जब मिले सब हर्श लगता है
अब हाल-ए-दिल बैठ रोने से दिल हल्का लगता है-
जिस दिन मेरी इन बेतूकी बातों मे छुपी ख़ामोशी सुन लोगे
उन दिन तुम मुझे पूरी तरह समझ लोगे-
ख़ुशियों की तलाश में ये सन्नाटा भी शोर करने लगी है
कभी मुस्कुराने को वज़ह की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी
अब एक वज़ह ढूँढने को पूरी रात भी कम पड़ने लगी है-
तड़प इन 'निगाहों' की समझेगा कौन
जो मुद्दा है बाजार , बन बैठा 'मौन'
किराये का गम है , किराये की खुशियां
नही जानता कब 'गिरे' कितना कौन
नई उम्र का सब 'तजुर्बा' है चाहे
बुढ़ापे में 'सठियाई' , है सारी कौम
अरे वाह रे... क्या तसल्ली है पाई
तबाही के दिल का , नज़रिया है 'मौन'
नज़रिया न बदलोगे , फब्ती कसोगे
जो घर मे तुम्हारे वो 'गरिमा' है कौन-
یہ خاموشی مرے کمرے میں کس آواز کی ہے
کہیں یوں تو نہیں تو بات کرنا چاہتی ہے
ये ख़ामोशी मिरे कमरे में किस आवाज़ की है
कहीं यूँ तो नहीं तू बात करना चाहती है-
जो कभी गंवारा नहीं है
कम से कम यही कह दे तू हमारा नहीं है-
हमनें सीखा है फूलों से.. के कैसे.. खिल के जीते हैं
ग़र रहना है ज़िन्दगी के गुलिस्ताँ में..
तो क्यूँ ना.. काटों से मिल के जीते हैं,
बहुत होशियारी है.. इस अहल-ए-जहाँ में
औऱ हम ठहरे ख़लल-ए-दिमाग़.. जो बस दिल से जीते हैं,
आसाँ नहीं पाना ख़ुशियों का कहकशाँ.. दिल मेरे
अब यहाँ तो इन्सां क्या.. ख़ुदा भी मुश्किल से जीते हैं,
बस बहते रहो पानी सा.. जोगी सा मलंग बनकर
के उन्हें भी तो ठिकाने मिलते हैं...
जो बिन मंजिल के जीते हैं..!-
इश्क़ में हम कुछ यूँ सँवर जायेंगे
खुशबू बन राहों में बिखर जायेंगे,
याद करोगे ना चाहते हुए भी
इश्क़ कुछ ऐसा हम कर जायेंगे,
बुलाना भी चाहोगे जो कभी
हम ना तेरे दर फिर आयेंगे,
हो जो तुम यूँ ख़ामोश अभी
चुप रहकर हम भी सह जायेंगे,
तुम यूँ ही देखते रह जाओगे
हम वक़्त के मानी गुज़र जायेंगे... @-