इस्लामिक वाक्यों में एक अहम वाकया ए कर्बला है जिसमें हज़रत इमाम हुसैन ने अपने दीन कि खातिर शहादत को कबूल किया मगर ज़ालिम का साथ नहीं दिया,और छोटे छोटे बच्चों के साथ काफिला कुफा के लिए निकला जिसमे
एक चार साल की बच्छी थी जिनका नाम हज़रत बीबी सकीना है हो हज़रत इमाम की लाडली थी,जालिमों ने छोटी सी बच्ची पे भी रहम ना खाया और कई दिनों से भूक प्यास से निढाल थी बाली सकीना उन्हीं
की आज शिद्दत को नजर में रखते हुए मैं ने अर्ज किया।
मुझसे अफ्तार किया नहीं जाता
रोता है दिल गमे हुसैन से जाम ए शर्बत पिया नहीं जाता।
याद आती है मुझको बीबी सकीना कि तड़प
लुक्मा ये जेरे लैब किया नहीं जाता।-
कदम कदम पर शरीयत
सलाम करती हैं।
अजान और इबादत
सलाम करती हैं।
#हुसैन नाम है इस्लाम
की बुलंदी का।
इसलिए जन्नत उन्हें
सलाम करती हैं-
There is no victory greater & bigger than the victory given to us by:-
HAZRAT IMAAM HUSSAIN. 😇❤-
पानी था जिन के सदके में पानी उन्हीं पर बंद था।
तीन दिन की तिश्नगी से हल्क एकदम खुश्क था।।
वह मासूम अली असगर के हल्क पर जो तीर चला।
उन यजीदीयो का कलेजा फ़िर भी ना थोड़ा हीला।।
वह बहत्तर तिश्नगी को भूलकर जिंदगी लुटा दिए।
हजरत इमाम ने दुश्मनों के परखच्चे उड़ा दिए।।।
इस्लाम को बचाने के खातिर सजदे में सर कटा दिया।।
फातिमा(र.अ) के लाल ने नाना का वादा निभा दिए।
अपनी शहीदी से इस्लाम को जिंदा कर दिए।।-
हुस्न के मारे है लोग जहान में
इश्क़ की कदर ना जाने लोग जहान में
कायल है लोग हुस्ने- मोहब्बत के, इश्क़ के कद्रदान है लोग अब कहा-
देख कर मौला हुसैन को
बाली सकीना ये बोलीं
बाबा अब उठये मुझे
सीने लगा लीजिए।।
कई रोज गुजर गए
हमने पानी को भी
जेरे लब नही किए
चाचा अब्बास भी अबतक
नही लौटे बाबा।
हम सब सहरा में तन्हा
रह गए बाबा।
भाई असगर कहां है
कहां है भाई अकबर बाबा
अब मुझको कोई प्यार से
सकीना नही कहता बाबा
कैदी कहते हैं सब लाडली
कोई कहता नही बाबा।।
बाबा उठ ये कुछ तो बोलिए
बाबा।।
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मातम का खूनी चांद भी दिखता है,
करबला के जंग का दिन याद आता है,
हजरत इमाम हुसैन हुए थे कुर्बान,
शहादत त्याग बलिदान का वो दिन,
मातम तजिया निकालने का पर्व लाता है।-
दश्त-ए-बाला को अर्श का ज़ीना बना दिया.
जंगल को मोहम्मद का मदीना बना दिया.!
हर ज़र्रे को नजफ का नगीना बना दिया.
हुसैन.. आपने मरने को जीना बना दिया.!-
“या गौसे आज़म.
आओ आओ फरियाद करूं,
मोहम्मद कि आन धरुं,
आओ हाज़िर हो दीदार दो,
हसन हुसैन के नाम पर आओ,
आओ आओ अल मदद मेरे मौला.”-
जिसके ज़िक्र से कौनेन में सवेरा है
हुसैन दिल में न हो तो फ़क़त अंधेरा है-