⛰️⛰️⛈️⛈️आज आबु मुस्कुराया हैं ⛰️⛰️
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हरियाली परिधान में, श्रावण की ये शाम
अवंतिका में जप रही,महाकाल का नाम-
ये मन क्यूँ क्षुब्ध है , दिल में मचा ये कैसा शोर है
जब पलकें मुंदती हूँ तो शिव तू मेरे समीप है
ये क्लांत मन मेरा होता शांत है जैसे ही आँखे मेरी
खुलती है ये मन मेरा क्यूँ इस कदर त्राहिमान है
तू ही बता क्या करुँ में , सुबह का वक़्त है सामने
ये दुनिया खड़ी है जाना इसी जीवन के रण संग्राम में है
या तो तू तेरी डुगडुगी बजा और करदे मेरा मन शांत
या फिर नंदी भेज अपना और समीप अपने बुला रख दे
अपनी कृपाओं का मेरे मस्तक पे हाथ अब नही मुझे
इस तरह की ये दुनिया स्वीकार है तू बैठा हिम पर आँखे मूंद
तुझे क्या मालूम तेरी इस दुनिया का क्या हाल है
ग़र है तुझे सब पता तो फिर अपनी पलकों को उठा
कर दे तेरे भक्तों का बेड़ा पार है
मेरे शिव ।।
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आई नखराळी निराळी हरियाली अमावस....
आई सावण रा झूला झुलणने हरियाली अमावस....
प्रकृति माँ ने हर्षावाने लेर आई चारों मेर हरियाली...
होवो राजी बांटो खुशियां, निट अई चोखी हरियाली....
दूर करण ने जग रि दुःखेडी अमावस.....
आई नखराळी निराळी हरियाली अमावस......-
नीड़ सूख रहा था
बसंत क्यूँ आता है
हरियाली ले जाने
बसंत में पीला यहाँ कुछ नहीं होता
हाँ रेत रहती है
तालाब रहते हैं
नीड़ रहते हैं
आसमान रहता है
होश उड़े हुए से पीले
..
बसंत गुज़र गया
नई कोंपलें खिलने लगी
पत्तियों ने श्रृंगार किया नीड़ का
ये अद्भुत है
..
बाकी सब को अभी हरियाला होने में
वक़्त लगेगा
.. हो जाएगा .. जल्द ही
समय कभी एकसा नहीं रहता
अमावस काली ही नहीं होती हमेशा
ये हरियाली भी होती है-
ऐ ज़िन्दगी तु इतनी गुमशुम क्यों है,
दिल में तूफान और चेहरे पर मुस्कान क्यों है।
ये सावन की बरसात भी क्यों चुप है,
ये तीज की हरियाली होने पर भी इतनी खामोशी क्यों है??
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हरे भरे खेत
हरे भरे खलियान
खिला सा मौसम
खिला सा माहौल
ये और भी खुशनुमा हो जाये
गर मन भी हो जाए ऐसा
गर तन भी हो जाये ऐसा...!!
( हरियाली अमावस्या )
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