नमोस्तुभयं 🕉️   (वैराग्य 🍁)
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Joined 29 October 2020


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सुनो,,
इन सभी नामों के अनुरूप,
मेरे अंतस में... समाई हो राधे!!!!
फिर कैसे कह दूँ,
हम तुमसें और
तुम हमसे पराई हो राधे..!!!!

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ख्वाबों की दहलीज से
हर दफ़ा वापस
लौट आता हूँ...
बस
इस "डर " से
कंही ख्वाबों में भी
अब उसे ना खो दे हम!



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तुम्हारे और मेरे
बीच
कुछ भी आँखिरी नहीं हैं राधे..!
सिवाय.... आँखिरी सांस के..

बोलो....

लोगी या छोड़ दोगी..??












वहीं... "सांस "
😅😅😅😅

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"सम्पूर्ण प्रकृति हो "

(अनुशीर्षक देखे )

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"त्याग चूका हूँ "

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ये
महज
एक छाया
ही तो हैं, तुम
इसमें प्रेम संवेदना
भरने की समय जाया
नहीं करो, यह संवेदनशील
नहीं हैं, इसीलिए हैं.. अक्सर
नाजुक चीजें मैंने टूटते हुए देखा हैं!
.
.
.
इसमें प्रेम कल्पित नहीं हैं.. फिर भी प्रेम
की ठण्डकता इस छाया में हैं..!!
ऐसा मुझे लगता हैं....?

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मुक्कदर में ही तो नहीं हैं वह
फिर कैसे मुकद्दर से लड़ जाऊं
वह देखे हैं
नज़र भर
और दे गए
जीने की उम्मीद भी,
फिर
उसके बिना कैसे रह जाऊं!

-



तुमने मुझे प्रेम अर्पित किया
मैंने अपना सब कुछ तुम्हें समर्पित किया..!!

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"तन्हा रातें "

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बाँध ले चलना मुझे अपने हर आयाम में
तेरा ही सिर्फ तेरा ही बनूँ हर सुबह शाम में

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