जिम्मेदारियों के तले मुस्कुराहट लिए
जब कुछ ख्वाहिशें छिपा देते हैं,
साथ ही कुछ ख्वाहिशें भुला देते हैं
तब बचपन याद आता है.....
ना कही जाती है बाते मन की
अनकही सी हर बात रह जाती है,
चुपके से आंखों के किनारे नम हो जाते
तब बचपन याद आता है......
इस उलझी हुई सी जिंदगी को
सुलझाने में वक्त लग जाता है,
खोकर खुद को पाते है कहीं कुछ वक्त
तब बचपन याद आता है.......
कुछ इस कदर मशरुफ रहते है
खुद से मिले बरसों हो जाते है,
जब मिलते है खुद से बड़ी मासूमियत से
तब बचपन याद आता है.........
बांटकर सबको उनके हिस्से की खुशियां
हम खुद मुस्कुराना भुल जाते है,
तंग से आ जाते है जब जिंदगी से
तब बचपन याद आता है.........
एक बचपन ही तो है जो
जिंदगी के हर रंग से अनजान
रह खुल कर जी पाता है,
और जब भी तन्हाई घेरती है मुझे
तब बचपन याद आता है
हां, तब बचपन याद आता है.........
-