क्या लिखूँ
क़भी क़भी मनः स्तिथी यूँ अटूट सी हो जाती है
के आँसुओं को बहने की.. छूट सी हो जाती है,
लाख कोशिशों से भी भरते नहीं.. रिक्त स्थान मन के
क़लम भी असहाय.. मूक सी हो जाती है,
कल्पनाओं के कागज़ों पे पंक्तियाँ बिखरी पड़ी है
पऱ शब्दों को जोड़ने में.. चूक सी हो जाती है,
उफ़्फ़.. असमंजस में यूँ होता है मौसम दिल का
के बारिश भी होती है.. और धूप भी हो जाती है,
क्या लिखूँ
क़भी क़भी मनः स्तिथी यूँ अटूट सी हो जाती है
के आँसुओं को बहने की.. जैसे छूट सी हो जाती है..!-
वो काग़ज़ भी रद्दी हो गए हैं जनाब
जिन्हें आंसू की स्याही से लिखा था;-
लिखने के भी तरीके होते हैं
शान
जरुरी नहीं काली स्याही काला ही लिखे-
महसूस करना है तो अपनी आँखें बंद करो
और उन पलो को याद करो जो साथ मे बिताये थे
स्याही पन्नो पे क्यों बिखेरना उससे क्या होगा..!!
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स्याही से लिखे ख़तों का जवाब ना आया
सोच रहा हूँ, आखरी ख़त खून से लिख दूँ-
बन जाना वरक़, तुम किसी शायर का, मैं भी......,
उसी शायर की, स्याही बन जाऊँगी,
उस के हसीन, मोहब्बत़ के नज्मों को, मैं......!
अपने रंग से, तुझ पर लिख जाऊँगी।।-
बन जा तू कोरा कागज़.. बनू मैं स्याही..
चल मिलकर लिखते हैं, प्रेम की एक नई चौपाई.. 💕-
तेरे......!
दिए हुए कलम, तौफे में, हमने उसे,
आज भी बडे़, खैरियत से रखा है।
स्याही........!
खत्म हो गई है उसकी, मगर, हमने
उसे,भरी स्याही वाले, कलमों से भी
ज्यादा, दर्जा दे रखा है।-
रह गई अकेली अब इस सफर में
साथ रहने का दौर मां, अब ख़तम हुआ
जो लड़ती थी हर एक गलत बात पे
उसका वो जोश मां, अब ख़तम हुआ
सोती थी सीने से जो तेरे लिपटकर
लालच तेरी लोड़ का मां, अब ख़तम हुआ
समझती थी बातें जो आंखों से दिल की
वो नैनों का जोड़ मां, अब ख़तम हुआ
मनाती थी तुम मुझे मेरे रूठ जाने पर
ज़िन्दगी का वो मोड़ मां, अब ख़तम हुआ
बेरंग सी जिंदगी समझती थी जिसे मोहिनी
सभी रंगों का निचोड़ मां, अब ख़तम हुआ
'गीले पन्नों का सफर' जो मैंनें चला
उनपर स्याही का ओड़ मां, अब ख़तम हुआ,,
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सुनो..........!
हम सफेद, वरक़ ले आएंगे,
तुम! लाल स्याही वाली, कलम ले आना।
हम, दिल का एक हिस्सा बनाएंगे और.......,
अधूरा हिस्सा, तुम बना देना......।।-