जिस दिन सरकारी दफ्तरों का
सिस्टम दुरुस्त हो जायेगा ,
मेरा वादा है प्रिये !...
हम एकमुश्त हो जायेंगे ।-
माना सारा सिस्टम देश का दुश्मन है।
मचा है हाहाकार हर तरफ़ क्रंदन है।
दिल पे रख कर हाथ तू सच ये बोल ज़रा।
क्या तूने खुद अपनी जान की की परवाह?
निकला घर से भीड़ बढ़ाने दुनिया की।
क्या तूने खुद मुँह और नाक की रक्षा की?
सिस्टम की बारी तो बाद में ही आयी।
क्या उससे पहले तेरी सुधि जग पाई?
उस डॉक्टर में दिखा खुदा का रूप नहीं?
जो कहता था अभी कोरोना गया नहीं।
जा कर भीड़ में डुबकी किसने मारी थी?
किसके सिर पर घूमने की धुन तारी थी?
क्या लगता था तुझे कोरोना छोडेगा?
या आया तो फूंक मार के मोड़ेगा?
एक ने दस दस में कोरोना फैलाया।
अब तुझको सिस्टम देश का याद आया।
हर तरफ़ उघाड़े नाक मुँह को लोग खड़े।
कब्रिस्तानों में मुँह ढके मृतक पड़े।
सब इक दूजे पे दोष मढ़ते जाओ।
बिना मास्क घूमो बाद में चिल्लाओ।
खुद तेरे सिस्टम से जो ना रुक पाया।
मंत्री जंत्री कौन किसी के काम आया?
मुँह ढक ले या कफ़न से मुँह ढंकवाएगा?
बचा नाक या देश की भी कटवाएगा?
अब भी चेत जा गर जो जान ये प्यारी है।
देश बचाने की अब तेरी बारी है।
अंजलि राज-
क्या हक हैं मुझे..?... कोसने का
सिस्टम गलत है.... ये बोलने का...
रचना अनुशीर्षक में-
2122 2122 2122 212
रात थी बरसात की मौसम वहाँ अच्छा न था
इस तरह पहले यहाँ पानी कभी बरसा न था 1
क्यों पुलिंदा झूठ का सबको सुनाया रातभर
उस कहानी में बयाँ इक लफ्ज़ भी सच्चा न था 2
जब ज़रूरत थी मेरी इमदाद को आया नहीं
शह्र में दिलदार कोई भी तेरे जैसा न था 3
सिर्फ लाचारी दिखी बाज़ार में जब भी गए
ख़ूब थे सामान अपनी जेब में पैसा न था 4
हैं हमारे ज़ेहन में महफूज़ वो मंजर सभी
कीमती लम्हों को हमने तो कभी खर्चा न था 5
शह्र डूबा बाढ़ में सरकार कुछ करती नहीं
इतना बेपरवाह सिस्टम तो कभी देखा न था 6
जानकारी में जो आया आपके वो और है
आपने समझा नहीं ये वाक़िआ ऐसा न था 7
नज़्म,ग़ज़लें और रुबाई थी "रिया" के नाम की
कौन सी महफ़िल थी जिसमें आपका चर्चा न था 8-
ज़िंदा हूँ ...
डरा नहीं हूँ मैं,
मरा नहीं हूँ मैं,
देखकर
सिस्टम और हालात
बस, थोड़ा शरमिंदा हूँ.
हाँ मैं...
...अभी ज़िंदा हूँ .
-mkm-
लापता हूँ मैं कब से
कोई मुझे सर्च करो...
कही सबमिट हो गया हूँ
या कि डिलिट हो गया हूँ,
किसी फ़ोल्डर में छिपा हूँ
या कही बग बन गया हूँ!
मुझे पता नहीं चलता खुद के वजूद का
मैं सिस्टम में अब भी हूँ
या कही हाईड हो गया हूँ
अजीब है इंटरनेट का जाल
बन्ध गया हूँ, दम घुट रहा है
ख़ुद क्रैश कर जाऊन्गा
और पुरे सिस्टम को भी गले से लगा लुंगा!
-
नहीं,एक बात मैं सुन नहीं पाता हूँ!
कई बात बोलो
बार-बार बोलो
तब मेरे कान में कुछ सुनाई देगी,
कोशिश करूंगा समझने की
मैं ढीठ और नासमझ हूँ
या ये मेरी आदत है....
अनसुना करने का,मौन रहने का....
मैं सिस्टम हूँ!
मैं संसद हूँ!
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विश्व गुरु देखने की चाह थी
पर दिखा एक "भयावह भारत "
जो गंगापुत्र के माता के गोद में शांति से पड़ा था
और अपने मृत मांस से देश के "भूखे कुत्तों" का पेट भर रहा था
गर्व से नहीं कहोगे भारतीय हो???
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दिल वालों का दिल...
दिल वालों का दिल, अब फेल हो रहा है,
दिल्ली में, राजनैतिक खेल हो रहा है.
राष्ट्रपति शासन की मांग हो रही हैं,
सिस्टम सरकारी, यहाँ फेल हो रहा है.
टूटा धैर्य, सभी आस छोड़ रहे हैं.
मरीज़ सड़कों पर ही, दम तोड़ रहे हैं,
मौत के सौदागर अब खुश हो रहे हैं,
बिना अपराध के ही जेल हो रहा है..
-mkm-