हर हसीन चेहरे पर तू अटक जाता हैं
उनमें एहसास पहले प्यार वाला क्यों चाहता हैं
खेलते हैं सब तुझसे,तुझे कौन अपनाता हैं
फिर भी तुझे बार बार टूटने में मजा आता हैं ?-
दिलों को नाउम्मीद ना किया करो यारो!
सुना है.. उम्मीद पे ही ये जहां कायम है!!-
आगाज इसका जितना सुखद
है अंत उतना ही दुखद
चाहते हो सुकूँ ओ ईमान से जीना
तो रखो विवाहेत्तर संबंधो से खुद को अलग...-
एक
बिंदु
से
असीमित प्रेम
दो समांतर रेखाओं में,
दो समीपवर्ती दिशाओं से होकर
निरंतर निरुत्तर,
आनंद की ओर अग्रसर,
अनैतिक विचारों में कुछ तो साजिश हुई,.............⚫️
और हुआ फिर अवरोध,
समांतर रेखाओं को
जोड़ दिया एक विपरीत रेखा ने,
त्रिभुजाकार यह आकृति,
त्रिशूल के समान
गृहस्थ
जीवन में,
शूल है....!!!
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विवाहेत्तर प्रेम संबंधों की
आधारशिला तो वास्तव में निर्मूल है
परन्तु दाम्पत्य जीवन में
परस्पर बढ़ती अपेक्षाएँ इसका मूल है
वर्तमान में इन सम्बन्धों में
परिलक्षित परिवर्तन आमूल-चूल हैं
परस्पर त्याग और आदर भावों
की रिक्तता से समानांतर रिश्तों
का हुआ उद्भव
यथार्थ दुनिया से निकलकर
काल्पनिकता में आगमन से
होता इनका तद्भव
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एहतियातन इश्क़ की समझाइश पर हैं वो
वरना अच्छे को तो अच्छा कहा करते थे
एक हम हैं जो अब तक डूबे हैं दरिया में
ले कर कश्ती वो तो किनारों में बहा करते थे-
"देता रहता हूँ समझाइश दिल को
फिर भी कभी कभी जिद्द करता है
मेरे हाथ में बिलकुल नहीं है हालात
तो भी मुझे लापरवाह सिद्ध करता है"-