हर रंग से गुजरी है जिंदगी, हर रंग से मैं मुखातिब हुआ,
इंद्रधनुष के सात रंग सा, फिर तेरा प्यार मुनासिब हुआ!
पुर पुर घुमा मैं तुम्हे तलाशने, जिस पृरी में तेरा रहना था,
सात पृरी सी निर्मल निश्छल सा, तेरा प्यार नसीब हुआ!
कभी बलखाती, क्भी इठलाती, क्भी बहती तू आंखों से,
मोक्षदायनी सात नदियों सी, जीवनभर का उद्धार हुआ!
लोक परलोक की बातें बेमानी, हर लोक सी तू लगती है,
सात लोक सी दुनिया जैसी, आत्मलोक सा प्यार हुआ!
मेरी ही तुम ब्रह्मांड हो, तुम ही हो मेरी आधार जगत का,
सात ग्रहों के इर्द गिर्द घूमती सी, मेरा ये घर संसार हुआ!
पत्नी, प्रेयसी, दोस्त, सहचरी, हर वक़्त तुम हाज़िर रही,
सप्त वंदनीय के तुम हो बराबर, आदर का आदर हुआ!
पग पग पर तू साथ है मेरे, जीवनपर्यंत का वचन हुआ, _राज सोनी
सप्तपदी के बंधन में हम दो, जीवन का अंगीकार हुआ!-
विरह की अग्नि में जल तपस्या मैं कर रही
तो अनवरत प्रतिक्षा में तुम भी तो होंगे
पा कर तुम्हें सप्तपदी वचनों से, फिर खोया
अधूरी हूँ यहाँ, तो पूर्ण तो तुम भी तो नहीं होंगे
कुम्हलायी ,निस्तेज, निर्जीव सी ढोती हूँ काया
फूल सा तन, सुरभि-सा मन तुम्हारा भी तो ना होगा
चेहरे की फीकी हँसी से ढकती हूँ उदासी की लकीरें
हँसी उजली वो नीली चमक तेरे चेहरे पर भी ना होगी
सुवास रहित निर्जन पथ पर एकाकी सफर पर हूँ मैं
महकती ,चमकती चाँदनी यामिनी में तुम भी तो ना होगे
आँखोंं से बहते हैं अविरल अश्रुजल की धारायें
तेरी आँखों से खुशियो के अक्षुनीर तो ना झरते होगे
अनजानी नियति से बँधी हैं जो सारी दिशाएँ हमारी
ये सत्य है,ना मैने चाहा था इसे ना ही तुम चाहते होगे
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संकल्प लेकर प्राण प्रतिष्ठा करनी होती है
तब जाकर मिट्टी में देवी का निवास होता है
हम कैसे बिना सप्तपदी के तुम्हें देह सौंप दें
जिसमें तन-मन से मिलन सहवास होता है-
तापमय जीवन का दिन तपता रहा
रात की चाँदनी देह जलाती रही
इस पीर का तुम अहसास कर लो
मधुर चाँदनी में अंगीकार कर लो 🫂
चाँद उकेर रहा उन्मुक्त कलाये शीर्ष गगन में
छायी हुई दुग्ध उज्जवल सितारों की पिछौरी
इस यामिनी में तुम मुझे स्वीकार कर लो
मधुर चाँदनी में अंगीकार कर लो ,🫂
बंधी हुई तुझ से प्रीत मोह के बंधन से
सप्तपदी, अग्नि के फेरों और वचनों से
फिर चंचल घड़ियों की मृदु बरसात कर दो
मधुर चाँदनी में अंगीकार कर लो 🫂
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तुम छूकर पैर जो माँग रही वादा मुझसे
ये वचन मुझे ही कर देगा आधा तुमसे
तुम सदा सुहागन रहो अगर मैं ये कह दूँ
तो बोलो कैसे जन्म जन्म का वादा दूँ
आज्ञा दो मुझको पहले तुमसे जाने की
तब पूरी होगी साध तुम्हीं को पाने की
तुम कुछ दिन कुछ पल इंतज़ार के जी लेना
मेरे बिन अपने कुछ आँसू भी पी लेना
फिर आ जाना उस पार मुझे तुम भी मिलने
मन की कलियाँ फिर से लग जाएँगी खिलने
सजनी तुम मेरी जनम जनम की साथी हो
तुम मेरे सारे पुण्य कर्म की थाती हो
बस इसी हेतु मैं संग सुहाग ले जाऊँगा
और इसको लेकर अगले भव में आऊँगा
अग्निदेव होंगे समीप हम सप्तपदी दोहराएँगे
सच मानो दोनों युगों युगों तक इक दूजे को पाएँगे
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भूल गए तुम सप्तपदी
साथ में दी अग्नि की हवि
गठबंधन था सात जन्म का
क्यो काल ने खोली गांठ अभी
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छाया-सी मैं तेरे साथ चली
पाथेय तेरा अनुसरण करती रही
फिर तुम ने मुझको क्यो विलग किया
क्या याद ना रही तुम्हे वो सप्तपदी
वो पवित्र अग्नि की मंत्रोच्चारण हवि— % &-