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With thoughts like butterfly 🦋
My works :–
🌺 #अनाम_काव्य_संग्रह 🌺 #a_tw... read more
" वक़्त "
ग़र वक़्त यूँ बोला करता, तो करता बीतीं बातें,
बतलाता वक़्त था कैसा, जब रातें थीं सौगातें।
जीवन के उलझे पल को, सब मिलकर यूँ सुलझाते,
मिलकर एक- दूजे संग-संग, हर गम, हर अश्क बहाते।
ग़र वक़्त यूँ लौटा करता, तो जीता बीतीं यादें,
थम जाता और ठहरता, बुनने कुछ सपने-बातें।
किसी की आँखों में ठहरता, किसी की बातों से गुज़रता,
यूँ थमते और गुज़रते, स्वच्छंद सपनों-सा बहता।
पर वक़्त की चाहतें सारी, न थमती न ठहरती,
ये तो गुज़रा करतीं हैं, हो मुश्किलें या सौगातें।
है वक़्त भी बंदी कुछ यूँ, जैसे सपने और हम-तुम,
है इसे गुज़रना यूँ ही, हो वसंत या ख़िज़ाँ-सी रातें।-
दोस्ती की उम्र लंबी यूँ रहे हर उम्र यारों,
जैसे हो जन्मा वृक्ष पर कोई पर्ण नवजात।-
" मजबूर* मजदूर "
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दिन दौड़ते..
दोपहर भागते..
शाम सोंचते..
और रात रोते..
यूँ ही कट जाता है,
हम मजबूरों* मजदूरों का जीवन।
हमने नहीं देखे,
सुनहरी सुबह
नहीं ली
दोपहरी की
चैन की नींद
न देख पायें
सुंदर संध्या
और न ही
देख पायें
जीवन का
सुंदरतम स्वप्न।
हम मजदूर,
सोंचते हैं.. सोते नहीं!
हम मजदूर,
भागते हैं.. भोगते नहीं!-
* खेल की राजनीति *
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सीमाओं पर,
सिपाहियों को गोलियां लगतीं हैं।
खेल में,
खिलाड़ियों की बोलियाँ लगतीं हैं।
अंतर मात्र इतना है
कि सीमाओं पर
सिपाही अपनी
जान देते हैं!
और खेल में
खिलाड़ी अपनी
भारी-भरकम टिप्पणी!
"हमें खेल को..राजनीति से..दूर रखना चाहिए।"
किस खेल को?
जहाँ बोली लगती है?
जहाँ बाज़ी लगती है?
जहाँ फिक्सिंग होती है?
जहाँ खरीद-बिक्री होती है?
जहाँ झणभंगूर राष्ट्र-प्रेम होता है?
या जहाँ मात्र राजनीति होती है?-
जैसे - जैसे बढ़ती है
घर से दफ्तर की दूरी,
वैसे - वैसे राहों में
खतरा गहराता जाता है।-
क्यों कपोलकल्पनाएँ कामनाएं काढ़ती हैं?
जब जीवन-चीर को त्यागना हीं धर्म है!-
इक़रार-ए-मोहब्बत करने को न ख़्वाहिश कोई हर्फ़-वर्फ,
जब हम तुम होते साथ-साथ वो लम्हा काफी होता है।-