आयुष," हमारे गुड़हल के पौधे पर तितली ने अण्डे दे दिये हैं शायद"क्या करूँ? इल्लियों ने कलियों में छेद कर दिये हैं।
माँ ,"रहने दो अपना चक्र पूरा करके उड़ जायेगी तितली बनकर"
"जीवन है इनका छोटा सा जीने दो"
मैं अब आश्वस्त हूँ। तुम कभी किसी का बुरा नहीं करोगे मेरे बच्चे!-
"संस्कार"
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अच्छे संस्कार नहीं मिलते किसी मॉल से,
ये तो वो नींव है, जो जुड़ती है परिवार के माहौल से!
जरूरत है आज की पीढ़ी को संस्कार सिखाने की,
यही तो है सीख चरित्र को बेहतर बनाने की!
कपड़ों से किसी के संस्कार की पहचान नहीं होती,
भले ही ना हो सर ढका, तो क्या वो लड़की लायक सम्मान की नहीं होती?
अक्सर लड़के भी बेहतर भविष्य के लिए घर से दूर चले जाते है,
इसका आशय ये तो नहीं कि वो अपने घर के संस्कार भूल जाते है!
बेटों को सिखाओ कैसे?
नारी का सम्मान होता है,
बेटियों को सिखाओ कैसे?
मायका और ससुराल दोनों ही उसका मान होता है!
संस्कार तो वो पौधा है जो अच्छी सोच और आचरण से बड़ा होता है,
संस्कार से ही तो मानव अच्छे चरित्र के साथ समाज में खड़ा होता है!!
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"लिखने से"
एक व्यक्ति ही बन जाता है..."एक समूह"
हो जाता है एक..."विचार और संस्कार"
समाज की 'धडकन' 'सांस' 'आत्मा' और "प्राण" !
सहसा अगर,
उससे ये "लेखन"
छीन लिया जाये;
तो 'समूह' का 'समूह'
बन जाता है "एक लाश" !!
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डिगाते है 'रस्म'
कदम जिनके...
भिगोते है आंख
संस्कार 'वरण' के
पीछे क्यूँ पड़ी है
मानवता सारी
रस्मो रिवाजो के फेर में
उपमा दे-देकर
थकता नही कोई
रस्म की तरह
नौ दिन का पूजन
रस्म की तरह
कैंडल मार्च
पापा की परी
रोती है बहुत
तकिये से लिपटकर
जब बांधते है 'रस्म' उसे
तोड़ते है 'संस्कार'
वजह कोई नही पूछता
सिसकने की
बात इतनी सी है बस
की 'कोई' होगा-
औपचारिकताएं
'शेष' रह जाती है
व्यथित 'संकल्पों' की
ज़रूरत बख्श दी जाती है
खामोशियों को
'इकरारनामे' की तसल्ली के लिए
वजन तौलते 'सिद्धांत'
'कम' ज्यादा
'ज्यादा' कम
के 'परिमाप' से
बाहर ही नही निकल पाते
'रस्म' हो या 'संस्कार'
'वजन' उतना ही
की जिनसे कोई
'ख़्वाब' न टूटे-
हमारे संस्कार ही अपराध को रोक सकते हैं सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती😐
अच्छे संस्कार किसी मॉल से नहीं, परिवार के माहौल से मिलते है।-
ये रस्मों रिवाज़ो की 'दुनियां' है कैसी
तड़प ज़िन्दगी को बस , देखा करे हम
वजह बनती है 'आंख' का हर ये आंशु
जो तकदीर ऐसी तो , क्या भी करे हम
विधाता की रचना जो 'जननी' हमारी
बंधी सर से ले पाव , बांधा करे हम
समय की कोई होगी 'तब' की जरूरत
अभी 'आज' की क्यूं न, सोचा करे हम
फ़लक तो वही है नया 'आसमां' है
क्यूं उम्मीद कोई 'तोड़ा' करे हम
नही कोई 'बंधन' जो सैलाब 'मन' को
क्यूं उड़ने से 'परियों' को रोका करे हम
वही जो 'खुशी' है कोई 'खुदकुशी' है
क्या जीकर भी कोई 'मर' कर करे हम-
नफरत करने वालों से भी प्यार करो, तो कोई बात बनें।
अपनें जीवन का कुछ यूँ आधार करो, तो कोई बात बनें।
अमीरों की खातिर हर कोई, जान हथेली पे रखता हैं
गरीब के हक में जान निसार करो, तो कोई बात बनें।
बेटी है तो क्या हुआ, उसके भी कुछ अरमान हैं
उसे भी बेटे जैसा दुलार करो, तो कोई बात बनें।
वो दुल्हन बनकर आयी है, तुम्हारे घर आंगन में
उससे मायके वाला प्यार करो, तो कोई बात बनें।
यूँ तो सब सजते-संवरतें हैं, इस शरीर के लिये
तुम "आत्मा का श्रृंगार करो", तो कोई बात बनें।
चूमकर कदम माँ-बाप के, शुरुआत हो दिन की
अपने घर के ऐसे संस्कार करो, तो कोई बात बनें।-
सुरम्य तन उजला मुख और आकर्षक परिधान
मन कैसा है भीतर से ? नहीं हो पाता ज्ञान
जिव्हा से निकले शब्दों से होता संस्कारो का भान-
Real Gentleman :
राह चलती हर अकेली लड़की मेरी जिम्मेदारी है ..
क्योंकि मेरे घर पर भी मेरी एक राजकुमारी है !!-