शर्तों में कब बांधा है तुम्हें...
जिन्दगी..
ये तो उम्मीद के धागे हैं...
कभी तुम नहीं..!
कभी हम नहीं..!-
प्यार शर्तों पर कभी न करो जो जैसा है उसे उसी रुप में अपना लो बदलने की कोशिश न करो
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शर्तों में होता बयां,
ऐसा इश्क़ तेरा।
बेचैन मैं परेशान मन मेरा,
ये कैसा इश्क़ है तेरा?
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अपनी गलती ऐसे सुधारों
की फिर कोई भूल न हो,
चैन से बसर हो जिन्दगी
और मन में कोई शूल न हो,
यूँ तो जीते है जिन्दगी सभी
अपनी अपनी शर्तों पर,
पर ऐसा गुनाह न करो जो
उपरवाले को कुबूल न हो...!-
खुद को जानने के लिए,
खुद से खुद तक किए गए,
एक अनोखे सफ़र का,
दुनिया की परवाह छोड़,
दिल खोल कर जीने का,
बेवजह की बंदिशों को तोड़,
अपनी शर्तों पर चलने का,
भीगी आंखों से आंसू चुराकर,
हंसने और हंसाने का,
परिस्थितियों से लड़कर,
बस आगे बढ़ते जाने का।
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कागज के फूलों में खुशबू नहीं होती,
लहरों के बिना तरंगे नहीं होती।
बिना आंखों के दीदार नहीं होता,
और शर्तों के साथ प्यार नहीं होता।।-
मुहब्बत गर शर्तों पे हो तो मुहब्बत कैसी ...??
सीधे सपाट शब्दों में इसे समझौता कहें तो बेहतर है ...-