दिल की गिरह तो खुलने लगी है,
पर बातें तेरी अब उलझने लगी है!
प्यास दिल की जो जगने लगी है,
तुम्हें बिन देखे ये मचलने लगी है!
पहर आठों पवन मस्त चलने लगी है,
रूख जीवन की क्यों बदलने लगी है?
'बुधु' समझ के भी वो बिफरने लगी है,
साँसों से उसके भी वीणा बजने लगी है!!-
🌿‘‘जय जौहार जय आदिवासी’’🌿
सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित
🌾विश्व आदिवासी दिवस🌾
कि हार्दिक शुभकामनाएं
🙏-
जंगलों में रहने वाले,
पहाड़ों पर बसने वाले ,
पठार की छाती को फाड़,
करते रहते
जीने के लिए जद्दोजह़द ,
साल के गाछ- से सीधे
मेमना से भी अधिक भोले ,
वन -प्रांतर में खिले
पलाश के फूलों सरीखे,
बहते झरने के कल -कल ,छल-छल से ;
करंज और महुआ की भींनी-भींनी खुशबू से महके,
भौरों की गुन -गुन ,
है उनके जीवन की धुन ,
सरहुल , करमा, जितिया
सोहराय और बाहा के बहाने
अखरा में छा जाती मस्ती
मांदर की थाप पर,
हातू-हातू ,गाँव-गाँव ,
घर-घर का कोना -कोना,
थिरक -थिरक नाच रहा,
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा बाँच रहा,
जामुन-बेर-आम के मिठास की मिसरी उनकी ज़ुबान में
हजारों की भीड़ में निश्छल हँसी से आते पहचान में,
सरलता गहना है ,
प्रकृति का हैं वे दुलारे,
और हैं नदी -नाले , पहाड़ -पर्वत ;
गाछ -वृक्ष के प्रहरी।
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प्रकृति पूजक आदिवासी
जय जोहार, जय आदिवासी का अभिवादन करते हैं
वर्ष 1994 से हम विश्व आदिवासी दिवस मनाते हैं
सिंधु सभ्यता भी साक्षी देती,आदिवासी सदियों से शिव,प्रकृति को पूजते हैं
फिर क्यों आधुनिक राजनीति के जयचंद, धर्म से आदिवासियों को ठगते हैं
भैरव,भौमिया, काली,अंबा आदि,जिनके घर-घर देवी-देवता होते हैं
भाले, तीर कमान बेधने वाले,आज अपनी विरासत बचाने को लड़ते हैं
आदिवासियों की शहीद-स्थली में, मानगढ़ धाम को मानते हैं
जहां की दर्द भरी कहानी तो, हर आदिवासी से सुनते हैं
आदिवासियों का कुंभ, बेणेश्वर धाम को जो जाते हैं
संस्कृति का पावन संगम,हर आदिवासी वहां पाते हैं
सीधे-सादे मूलनिवासी,आदिवासी सबसे हिल-मिल रहते हैं
धोखा पसंद नहीं इन्हें,जंगल में साँप, शेर,सबको पालते हैं
अपनी सांस्कृतिक विरासत बचाने हेतु,हर आदिवासी न्योछावर होते हैं
जय जोहार, जय आदिवासी, राम-राम की, हर आदिवासी वाणी बोलते हैं
🙏जय हिंद,जय भीम,राम राम,जय जोहार🙏
✍️कवि R. K BADGOTI
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विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त)
क्या वो जानते हैं
कि वर्ष के कई अन्य
प्रचलित दिवसों की तरह
एक दिवस उन को भी समर्पित है
जिसके बारे में
शेष विश्व उतना ही अनभिज्ञ है
जितना उनसे
और उनके परिवेश से अपरिचित।-
आदिवासी ही मध्य प्रदेश की
संस्कृति के विशिष्ट अंग है|
सभी आदिवासी भाई बहनों को
विश्व आदिवासी दिवस की
बहुत-बहुत शुभकामनाएं व
टंट्या भील, बिरसा मुंडा एवं
अनेक वीरो को आज विश्व
आदिवासी दिवस पर
कोटि-कोटि नमन|
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प्रकृति औऱ पृथ्वी की
जिम्मेदारी लाखों सालों
से ढ़ो रहे है वो
तुम्हारी शरारत औऱ बेवकूफियों
को हजारों सालों से
अपने पेटों पर सह रहे है जो
तुम उन्हें कितना
जानते हो?
रत्ती भर भी नहीं!
जल, ज़मीन और जँगल
बचाने को
जब भी खड़े हुए वो
तुमने उन्हें नक्सली
कह पुकारा!
आख़िर क्यों?-
"विश्व आदीवासी दिवस"
बनना चाहता हूं मैं बहुत कुछ, 'गेती फावड़ा' थमाया तुमने!
'जंगल' मेरा घर था प्यारे, उसे काट.. मैदान बनाया तुमने!!
अंगूठा लेकर "एकलव्य" का, अर्जुन श्रेष्ठ बनाया तुमने!
अरे हम तो जनसेवक है, यारों जंगली तो बनाया तुमने!!
शिक्षा का आश्वासन देकर, सड़क पर 'काम' कराया तुमने!!
- Raj Kamal Narvariya-
विश्व आदिवासी दिन की ढेर सारी बधाई मेरी और से हैं।
आज विश्व मूल निवासी दिन जो हैं।
आज सभी के लिए खास बहोत हैं।
प्रकृति को ही देव मान लिया जो हैं।
आज अंधश्रध्दा लगती सबको जो हैं।
पागल बुध्धु सा मन लेकीन साफ जो हैं।
सर पे ना कोई छत फिर भी खुश जो हैं।
क्योंकी आसमान को सर मानता जो हैं।
हाथ में रखता वो तीर और मन में वीरता जो हैं।
तन पें महेंगे वस्त्र नहीं लेकीन आँखो पे नकाब जो हैं।मंदिर मस्जिद में ढुंढने वाले भी आज उनके आगे छोटे जो हैं।
खुद का वजुद बचानेवाले बहार नीकलने पर मजबूर जो हैं।
आज सब जातीवाद के मूल आधार आदिवासी वो जो हैं।
इसलिए विश्व मूलनिवासी दिन मनाने को युनो ने कीया जो हैं।
और गर्व रखते हैं उन संस्कृति का जो आज भी जीवीत जो हैं।-
मूल निवासी कहो या कहो आदिवासी।
मिट्टी से जब मिल गई मिट्टी,
सब एक हो गए, रहा ना कोई प्रवासी।।
मिट्टी से जो प्रेम करे, रखे ना उससे दूरी।
अहित करे ना वो किसी का,
कश्मीर में रहे या रहने जाए वो मसूरी।।
प्रकृति की रक्षा के लिए, वो कहलाए वनवासी।
मूल निवासी कहो या कहो आदिवासी।
मिट्टी से जब मिल गई मिट्टी,
सब एक हो गए, रहा ना कोई प्रवासी।।-