सुनो समंदर,
तुम अपना कोई
किनारा सूखा रखना
मेरे अश्क़ों को
मेरे घर में
अपना घर नहीं मिलता
- दीक्षा-
एक वादा था मेरा रोज तुझसे मिलने का...!!
देख आज मैं फिर तेरी कब्र पर आया हूँ...!!-
जो वादा 'हमेशा साथ रहने का' तेरी मोहब्बत न निभा सकी,
वो वादा तेरी यादों ने बखूब निभाया..-
आसान नहीं है उन बे-इरादा हुए वादों को सोचना ...
हर एक वादा अलग से जान लेता हैं जनाब....😢-
ज़िंदगी की राहों में चलना मुश्किल है
ख़्वाब चुभते हैं पैरों में
मौसम की तरह लोग बदलते हैं
साथ भी छूटते हैं अपनों के
कभी सोचा ना था
किसी और की ज़िंदगी बन जाओगे तुम
हाँ, कोई वादा तो नहीं किया था तुमने
लेकिन, साथ ना देने का इरादा तो नहीं था तुम्हारा
यूँ ही अचानक कैसे आगे बढ़ गए तुम..?
मेरा साथ छोड़ के, कैसे उसका साथ देने लगे तुम..?
रिश्ते और जिम्मेदारियों को निभाते निभाते,
ख़्वाब चुभते हैं पैरों में
ज़िंदगी की राहों में चलना मुश्किल है..!-
ये मोहब्बत है कोई वादा नही,
कि उतना ही करूँ, जितना निभा सकूँ!!
किशमिश...-
☹️
कुछ लम्हे मिलते हैं,
दिन में "सुशील",
वादा यह था हमारा
इश्क़ दिनरात चले !-
साथ निभाने का उनका वो जो वादा था,
शब्दों से पूरा मगर इरादों से आधा था |
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"प्यार में कभी कभी"
वादा जिंदगी साथ बिताने का, कुछ यूँ निभाना पड़ता है।
रूठें भी वो खता भी उनकी, फिर भी मनाना पड़ता है।
लगी हो शर्त जब उनसे, बेपनाह यूँ इश्क करने की
टूटे ना दिल उनका, खुद हारकर जिताना पड़ता है।
मुमकिन नहीं हर बार, पढ़ सके कोई हमारे एहसांसो को
जज्बात हो जब दिल में, तो होंठों से भी जताना पड़ता है।
यूँ तो वक्त सिखा देता है, प्यार के मौसम में ढलने का जज्बा
कमी ना हो समझने में, कुछ लम्हा साथ बिताना पड़ता है।
कुछ मुश्किलें भी जरूरी हैं, जिंदगी में हौसला बनाने के लिये
हालात जब बस में ना हों, तो मिलकर गले लगाना पड़ता है।
वाज़िब नहीं इश्क में हर बार, कसूर यार का हो जनाब
प्यार में कभी कभी, खुद को भी आजमाना पड़ता है।-