बा-अदब लेकिन मिज़ाज तल्ख़ ही रखना,
नर्म लहज़े की लोग कद्र करना भूल जाते हैं !-
उनके लहजे में अदब का यूँ शुमार होना,
सलीका उल्फ़त से दिल तोड़ने का ये भी अच्छा है !-
चलो इक बार फिर तेरे लहजे पे बात होगी।
तेरी मुस्कान और लरजते लबों पे बात होगी।।
कैसे होती है गुम मेरी रात उसपे बात होगी।
तेरी यादों और जागती आंखों पे बात होगी।।
कैसे होती मेरी सुबह और तारों पे बात होगी।
तारों में बनते बिगड़ते अक्श फिर उन पे बात होगी।।
ख्वाबों का सिला इन करवटों पे बात होगी।
मेरी बैचेनी और इन सलवटों पे बात होगी।।
रह गई जो अधूरी मुलाकात उस पे बात होगी।
सिरहाने बैठी "माही" मेरी इस नींद पे बात होगी।।-
छोटे छोटे टुकड़ों में समेट कर रखा है अपने यादों को
हर लम्हे को मैंने बड़ी खूबसूरती से यादों में बसाया है-
मेरे लहजे मेें इस कदर घुल गई है यादें तेरी
के मैं बातें भी करती हूं तो नाम तेरा निकल आता है।।-
मैं रिश्तों का लिहाज़ करता रहा,
उसने ज़्यादतियों को अपना हक़ बना लिया।-
शब्द वहीं रहते है लहजे कमाल कर देते है
किसी को दिल में तो किसी को दिल से उतार देते हैं
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अपनी तमीज को थोड़ी और तालीम दी..
सख्त हिदायत दी ..नहीं आए बातो के फरेबो में..
जबानों में तारीफ..
लहजे में ताने..
साथ चलने वाले मोड़ पे मुड कर अपनी ज़बान को लहजे से जोड़ लेते है..
हर अल्फ़ाज़ तारीफों की धज्जियां उड़ा देते है..-
लहजे समझ आ जाते है जनाब..!
बस लोगो को यूं बेइज्जत करना अच्छा नहीं लगता...-
" कुछ ख्याल आया तो तुझे उस अंदाज़ से लिखगे ,
ख़ैर अब बात करु तो तेरी कौन सी बात करु ,
मेरे लहजे में तेरा कुछ अंदाज़ छुपाये बैठे हैं ,
फिलहाल करें तो तेरी कौन सी बात करें . "
--- रबिन्द्र राम-