कभी कभी
सीता भी खिंचती है
लक्ष्मण रेखा
अपने और अपने मन के राम के बीच।-
तुम आओ
बनकर सीता
और
मेरे मन के पंचवटी में
छिपे दशानन का
कर लो अपहरण
और मुझे राम कर दो।
परन्तु इस बार भी
तुम्हीं को लाँघनी होगी
लक्ष्मण रेखा।-
काजल की लक्ष्मण रेखा इन नयनो में
ना अब कोई और बस सके इन लोचन में💜💜
माथ सजी दमकती सिंदूरी बिंदिया
समर्पित करती तुझ को अपनी जीवन नैया💜💜
एक चुटकी सिंदूर का सजना बाकी है
तेरे आँगन का एक कदम का सफ़र बाकी है 💜💜
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पहली बार देखा और निसार हो गये,
भागते थे जिनसे वो आज यार हो गये.
जुल्फे जो देखती थी कानों की लक्ष्मण रेखा,
वो भी आज दहलीज पार हो गये .-
यूँ ही नहीं सीतायें पार करतीं हैं लक्ष्मण रेखा
यथार्थ और छल में कैसे भेद करे जब वे
घर के बाहर के बेदर्द ज़माने को ही नहीं देखा-
लक्ष्मण रेखा चिन्ह है हर स्त्री की पहचान,
मर्यादित आचरण हो , सुशोभित होते चार चांद।-
कविता
नहीं लाँघती लक्ष्मण रेखा
पर फिर भी हो जाता है
उसका अपहरण
शायद कविता ही
मुक्त रहना चाहती है
नहीं चाहती अपने पैरों में
बेड़ियाँ कवि के नाम की।-
अगर सीता लक्ष्मण रेखा नहीं लाँघती
तो कैकेयी महान कहलाने से वंचित रह जाती।-
लक्ष्मण ने कुटिया के चारों ओर रेखा खींची, सीता के चारों ओर नहीं। अगर सीता के चारों ओर रेखा खींच देते तो शायद रावण अपहरण नहीं कर पाता।
इसी प्रकार हम सिर्फ अपने घर या तन को सैनिटाइज न करें, बल्कि मन को भी नकारात्मक विचारों से दूर रखें, तभी कोरोना हमें छू भी नहीं पायेगा।-
जाने उन्होंने मुझमें क्या देखा
खींच दी बीच में एक लक्ष्मणरेखा
बाहर उससे वो आते नहीं हैं
अंदर हम भी तो जाते नहीं हैं
एक तरफ प्यास दूजी ओर पानी है
बस यहीं ठहरी ये कहानी है
अपहरण मेरे चैन का किया उन्होंने
दोस्ती बस ऐसे ही निभानी है-