चहकता है महकता है मेरा आॅगन मेरी कुटिया ।
कोई क्या समझेगा हमारी दौलत है मेरी बिटिया ।।
ग्रन्थ,गगन और ग्यानियों की गाथा रहे अधूरी ।
गैर ज़िक्र के उस नन्ही की हर बात रहे अधूरी ।।
बेटी के रूपो की तुलना में गिनती सब तुल जाए ।
जिसको वह अपना कह दे हर पाप धुल जाए ।।
जहाॅ-2 पग-धूल पडे सोना-सा खिल जाता है ।
जिस ओर मुश्करा दे अपना-सा मिल जाता है ।।
दूर शहर में जाकर भी फिक्र हरपल करती हैं ।
गैर घरों में बसके भी अपना समझ के रहतीं हैं ।।
मेरी तनी हुई मूँछों का राज हैं मेरी बेटियाँ ।
कभी तो समझोगे सरताज़ हैं मेरी बेटियाँ ।।
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गुजरते थे हम
हिलती धरती
मूछों पर ताव धरे
हाथ में चांदी की
मुठ की छड़ी लिए
पहने हैं जूते बाटा के
जेब में है सजा रुमाल
चैन वाली घड़ी लगी
चश्मा भी गर्दन में
लटके हुए
जुल्फें थी बिखरी हुई
महकी चमेली के तेल से
रहते थे रूआब में
किसी को ना गिनते थे
अपनी-अपनी ही कहते थे
आगे पीछे नौकर थे
साथ में बीवी खड़ी हुई
बोलने की ना जरूरत थी
था रुतबा यह जवानी का
खूब रंग जमाया था
चौपालें खूब लगती थी
वाह वाह भी खूब होती थी
पान दान था सजा हुआ
बीड़े मुंह में दबे हुए
हुक्का पानी खूब चले
रंगीन होता नजारा था
वक्त बदला हालात बदले
गुजरात जमाना ढलने लगा
वृद्धावस्था ने मुंह चमकाया
रंग अपना सवाल लिया-
पीछे से वार किया हर बार
तुम दाव का मतलब क्या जानो
मुछो ना रखी आज तक तुमने
तुम ताव का मतलब क्या जानो
हिमान्शु अग्रवाल-
मैं अभिनंदन हुं,
देश के लिए लड़ जाता हुं,
उचांइयों से गीर जाता हुं,
फिर भी लड़ जाता हुं,
मौत को करीब से देख आता हुं,
फिर भी मौत को मात दे आता हुं,
जीत आता हुं फिर दिल सब के,
और याद सबको रेह जाता हुं,
बन जाता हुं मिसाल अभिनंदन की,
और फक्र देश का बन जाता हुं,
हुं वैसे तो आम आप सा,
मगर आपका गुरुर बन जाता हुं,
याद रखना देशवासीयों,
मूछों का ताव, देशप्रेम,
कल, आज और कल यही जजबा पालता हुं
विशाल जादव - "विश्रुत"
सलाम देश के सपूत को
#wing_commander_abhinandan-
साहेब
हमारी मुछो का आलम ये है...!
ताव हम देते है घाव किसी और को लग जाते है...!!-
जब इस देश में देशभक्ति सब से उपर होगी,
तब सारी पार्टीयाँ वोटर्स के कदमों में होगी
विशाल जादव - "विश्रुत"-
कुछ चीजें सतेह पे ठीक दिखती है,
अंदर से दोजख़ होती है,
बातें कितनी भी साफ़ करें मगर,
दातों में चीपकी रेहती है
विशाल जादव - "विश्रुत"-