Vishal Jadav   (Vishrut)
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Joined 4 January 2018


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23 APR AT 17:19

હાઈકુ

ગમે બધાને,
એવું લખી શકાય,
જરૂરી નથી

વિશાલ જાદવ - વિશ્રુત

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23 APR AT 17:07

હાઈકુ

શણગારે તું,
સજે દેખાય ખૂબ,
તારા ઝાંખા છે

વિશાલ જાદવ - વિશ્રુત

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23 APR AT 17:04

હાઈકુ

નવઢા બેઠી,
શૃંગાર સજી સેજ,
પિયુની વાટ

વિશાલ જાદવ - વિશ્રુત

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5 OCT 2022 AT 14:24

तुम भी अजीब हो....

हर साल जलाते हो,
हर बार जिंदा करते हो,

विश्र्वास नही खुद पे या,
हरबार विश्र्वास दिलाते हो?

खुद में पनपते ऐबों को,
नजाने क्युं सहेलाते हो,

याद तो करतें हो राम को,
मगर खुद को लंका में पाते हो,

न आवाज उठातें हो,
न सहेमे रेह जाते हो,

हो आज की सदी के,
या खुद को पुराने जानते हो,

रहेने दो अब ये नौटंकी,
हर-बार रामलीला दिखाते हो

विशाल जादव - "विश्रुत"

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30 DEC 2021 AT 23:10

मेरे लोग नही अब मौजूद, मुझे ये याद दिलाओ,
देहशत की बात करों या, जूठा ही दिलासा दिलाओ

विशाल जादव - " विश्रुत"

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8 NOV 2021 AT 19:14

किसी के दिल तक पहुंच जाना, ख़ता तो नहीं,
हड़बड़ी में थे, लापरवाह ताउम्र, ख़ता तो नहीं,

मंजिल, रास्तें, हमदर्द, फलसबें सब देख लिए,
एक पर आखिर तक टीक जाना, ख़ता तो नहीं,

आकर केहतें हैं वो, मैं कब गया था दूर तुमसे,
ऐसे बेतूके वादों से मुकर जाना, ख़ता तो नहीं,

अभी सब्र करों और आएंगे, कम नहीं दुनिया में,
ईश्क हैं माना अहेशानफ़रामोश, ख़ता तो नहीं,

कब जीये थे, कब मर जाएंगे, जाने दो, बातें,
हर वक्त अपनों से आंसु, शीकायतें, ख़ता तो नहीं

विशाल जादव - "विश्रुत"

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9 OCT 2021 AT 18:44

कपकपा सी जाती है जो आती नहीं निंद में,
सहेम सी जाती है जो आती नहीं निंद में,

आती तो है हर रोझ मुझमें, तुझमें याद बनकर,
जो वहाँ उस जगह ठहेरी है वो आती नहीं निंद में,

कहें क्या, सुने क्या, सब एक तरफा रहेगा,
कोई क्या करामात लाएगा जो आती नहीं निंद में,

चाहता तो हुं के वो आ जाए अबकी बार,
मगर कैसे बतलाउं यारों को की आती नहीं निंद में,

सो जाउंगा पता है आज या कल कोई कुछ केह ले,
आती तो है वो फूल लेकर, पर आती नहीं निंद में

विशाल जादव - "विश्रुत"

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23 SEP 2021 AT 19:48

हर दिल से गुज़र आया हुं,
हर बात समझ आया हुं,

क्या कहोगे, क्या कोसोगे?
था तन्हाँ, तन्हाँ लौट आया हुं,

थे बहोत मीलने-मीलानेवाले,
मैं वहीं से चूपके लौट आया हुं,

बादल, बीज़ली और भीगी तुम,
बस वही मोड़ नीकल आया हुं,

अब क्या बातें, क्या मशवरें?
एक जी गया, एक जीनेवाला हुं

विशाल जादव - "विश्रुत"

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18 SEP 2021 AT 23:36

हमें भला-बुरा खुब कहा गया,
और हम भला-बुरा होते गये

विशाल जादव - "विश्रुत"

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20 AUG 2021 AT 21:55

सरकारें बदलती है, मनसूबे नहीं,
दिल तार-तार रहेता है, मनसूबे नहीं,

क्या शिकवें क्या गीलें लेकर जाओगे?
हुकुमतें बदलती है, मनसूबे नहीं,

चंद देहशतगरों ने चांद मांग लीया तो क्या?
हर आवाम हरकत में आये, मनसूबे नहीं,

मर गये हैं या रुठ गये हैं क्या मालूम मुझे,
जो जिंन्दा थे वो थे बाकी रहे, मनसूबे नहीं,

हालाकी ये भी ठीक ही था जो हुआ छोड़ो,
क्या हैरत, क्या रंज-ओ-ग़म, मनसूबे नहीं

विशाल जादव - "विश्रुत"

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