हाँ तन्हाइयों में अकेले जी लेता हूँ ,
उठाता हूँ कप और अकेले पी लेता है ।।
हर बार की तरह हर बार दर्द होता है ,
जीने को इक ठन्डी आह भर लेता हूँ ।।-
तुम्हें याद कर रहा हूँ मैं पर तुम मुझे याद करो ना करो ये मर्जी तुम्हारी ।
मैंने कोशिशें तमाम कीं तुम्हें समझाने की पर तुम समझना ही ना चाहो ये मर्जी तुम्हारी ।
माना ज़माने-भर की समझ है तुम्हें पर तुम अपनों को ही ना समझो तो मर्जी तुम्हारी ।
उम्र गुजरी है तुम्हें अपना बनाने में फिर भी नज़रे ना पहचाने तो ये मर्जी तुम्हारी ।।-
बातें याद ना रखना भूली-बिसरी ,
लिखना बस जैसे सब हों मिसरी ।
और लिखो जैसे छटा हो बिखरी ,
मत कुछ लिखना जो मुझपे गुज़री ।।-
गर मैं तुम्हारी तरह बदल जाऊँ ।।
तो ज़माने की तरह सॅवर जाऊँ ।।@।।-
अब किसको मैं राग सुनाऊँ ,
खुद के कैसे राज बताऊँ ।
अन्तर-मन का युद्ध निरन्तर
किससे मै गुहार लगाऊँ ।।-
मेरे अपने बिछर गए सारे सपने बिखर गए
सबको ठन्डी छाया देकर मैं भी खुश हो लेता हूँ ।
मेरी दुआ है के चहके-मँहके घर-आँगन ये तुम्हारा
सबकी खुशियों के बीच खडा मैं चुपके से रो लेता हूँ ।।
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अब सबर कहाँ है दिलबर
उमर गुज़र गई तुझे मनाने में ।
ऐसे खुद में खोई-खोई मत रहा कर ,
नहिं तो रपोट लिखवा दूँगा थाने में ।।-
उसने शादी भी करली, बच्चे भी कर लिए ;
फिर भी अबतलक मन नहीं भरा होगा ।
वो जो आजकल सबपे झल्लाती है ना ,
शायद उसने राज को फोन नहीं करा होगा ।।
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सवाल फिर वही है तूँ किसी और की क्यों है ।
हर पल साथ रहने वाली आज भी दूर क्यों है ।।-