QUOTES ON #मान_सम्मान

#मान_सम्मान quotes

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27 DEC 2019 AT 8:00

कविता को दरबारी मत कर,
या फिर हमसे यारी मत कर!

हम घर फूंक तमाशे वाले,
हरगिज होङ हमारी मत कर!

बहरों से बेगाना बनकर,
ग़ज़लों से गद्दारी मत कर!

बदलेंगे हालात यक़ीनन,
दिल को इतना भारी मत कर!

कुछ तो अपनापा रहने दे,
हरदम दुनियाँदारी मत कर!

कभी किसी दिन हाथ पसारे,
इतनी भी दातारी मत कर!

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16 FEB 2020 AT 8:49

Life में वो मुकाम हासिल करो
जहाँ लोग तुम्हें block नहीं search
करें...।

" हिमांशु बंजारे "

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1 OCT 2020 AT 20:17

"परिवार का मान-सम्मान बढ़ाने के लिये चार बेटे भी कम होते है,लेकिन परिवार की सम्पति को और उनके मान-सम्मान को बर्बाद करने के लिए एक ही बेटा काफी है।"

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21 FEB 2019 AT 21:46

यूँ तो है हम मालवी भाषी,
पर हिन्दी भी हमे इतनी ही अच्छी आती।
तू को आप और मैं को हम बनाती,
मातृभाषा ही हमे सबका सम्मान सिखाती।।

भिन्न-भिन्न लोग भिन्न-भिन्न रीती-रिवाज,
भिन्नता में देश को एक सूत्र में पिरोती।
अलग अलग भाषाओं का भेद मिटाती,
हिन्दी ही भारत को भारत बनाती।।

यूँ तो है हर भाषा का अपना मान,
परन्तु मातृभाषा से ही है हमारा सम्मान।।

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23 JAN 2020 AT 13:45

जो आज अपनी सी नज़र आई है
दूरी बनाने पर भी
बस मेरी फिक्र करतीं नज़र आई है
पलट कर देखने पर भी
कहीं ना कहीं छुपती नज़र आई है
फिर वापस राह पकड़ते ही
मेरा साया बन सबकी नज़रों से बचाती आई है
और सिर्फ इस जिस्म का नहीं
मेरी रूह तक का मान बचाती आई है

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28 MAR 2019 AT 5:57

गिरो ना ऐसे गिरो के खुद की नज़रों में गिरो।
उठो तो ऐसे उठो के ओरों की नज़रों में उठो।

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23 MAR 2021 AT 1:39

हम बहुत कुछ लिखते हैं,
बहुत कुछ पढ़ते भी हैं,
क्या सब हमारे चरित्र का प्रमाण है,?
जो हम लिखते क्या यही हमारा चरित्र है,
या फिर उसके विपरीत।
अगर हमारा लेखन हमारा चरित्र है,
तो हम अपनी बुराई बर्दाश्त क्यों नहीं कर पाते?
और अगर विपरीत लिखते हैं,
पाठक को धोखे में क्यों रखते हैं?
मान-सम्मान पाने के लिए क्या झूठ लिखना सही है,
या फिर बनावटी सिनेमा की तरह हीरो सा प्रवेश करना?
आदर्श तो बन जाते हैं,
क्या हम खुद का भी आदर्श बन पाते हैं कभी?
क्या हमारा लेखन उतना ही आदर्शात्मक है?
और अगर है तो क्यों होता ग़लत कुछ भी,
क्यों हम ग़लत को सही और सही को ग़लत मान लेते हैं,
क्या हम भ्रम में हैं या सच को जीना ही नहीं चाहते हैं?

अपना सच लिखना आसान नहीं, वजह चाहे कुछ भी हो,
फिर पता नहीं क्यों दूसरों का सच लिखते हुए सोचते तक नहीं?

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19 MAR 2018 AT 20:16

कुछ रिश्ते पैसों के बल पर टिके होते हैं
पैसे हैं तो मान-सम्मान
वरना, हम कौन तुम कौन...😑😑

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12 JAN 2020 AT 19:55

आज थम सी गई ये नज़रें मेरी
जब उसकी नज़रों से इस कदर टकराई
देख उसके चेहरे की हँसी
उन आँखों ने अलग दास्ताँ सुनाई
मायुस थीं वो आज खुद से
की क्यों उसनें हिम्मत नहीं दिखाई
जानकर अपने सपनों का मोल
फिर भी उसनें वो रीत निभाई
बचाके उस पगड़ी का मान
वो त्याग की प्रतिमा कह लाई
किसी के घर की बहू तो किसी की बिवी बन
आज उसनें हर ज़िम्मेदारी निभाई
सुनकर ये दास्ताँ
आज मेरी भी आँख भर आई

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21 NOV 2019 AT 11:29

अपने जज्बातों से आज,
ताकि बचा रहे हमारे परिवार का नाम,
भले ही उनकी नज़रों में हम बेवफा बन जाए आज...
ये तो बस हमें पता है उनसे पहले,
एक वादा हमनें भी किया था ,
अपने परिवार के मान के नाम...

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