पर लफ्ज़ों में बयान ना कर सके
आँखें कर रही थी बस एक गुज़ारिश
पर अब तुम्हें इस इश्क में बांधने का
ये गुनाह ना कर सके हम-
A nature lover...
An observer...
A happie soul ... read more
इस अविस्मरणीय संसार पर
जहां आतंक अब तक एक पर था
जो अब दहक उठा हर इंसान पर
और फिर भी यह समाज कहता है
इस भूमि पर तू कर विश्वास बस
वह देख रहा है ना सब
बचाने तेरी लाज भी अब
पर ताज्जुब की बात है
जो सब भूल गए इस भ्रम में अपना धर्म
उसने कहा था
"यदि नारी शंका त्याग दे,
तो वह शकंर से कम नहीं,
और यदि मनुष्य अपना कर्म त्याग दे
तो उसे बचाने वाला वह स्वयं भी कोई नहीं "-
साहस का परचम
आज दो नन्हे सेनानियों ने लहराया है
आंखों में जुनून
और चेहरे पर मुस्कान लिए
इन्होंने कदम बढ़ाया है
इन्होंने शहादत देने का जो कर्ज़ चुकाया है
वक्त की एक अनूठी संरक्षणा को सच कर
हमें जीना सिखाया है
आज इन वीर बालको संग
उस माँ ने भी शहादत को अपनाया है
आज के दिन 1704 में
मेरे वीर सेनानियों ने एक उत्सव मनाया है
और हमें आजादी का अर्थ समझाया है
साहस का परचम लहराया है!
मैं नमन करता हूं उसे मां को
जिसने इस आज़ादी के शोर को
हर घर तक पहुंचाया है
मेरे गुरु गोविंद जी के साहस को
हमारे वीरों को सिखाया है
उन्हें इस काबिल बनाया है
उन वीर सेनानियों को उत्सव जो मनाया है
आज मेरे वीरों का दिवस मनाया है
आज वीर बाल दिवस जो आया है-
उन वीरों को नमन है
जो हर मनुष्य का दर्पण है
भावनाओं से भरपूर
वह हंसी ठीठौली का संगम है
इस छोटी सी आयु में
उनमें साहस दृढ़ निश्चय जो अमर है
जो शहादत को हंसते-हंसते गले लगा गए
आज मेरे उन्हीं वीरों का दिवस है
आज वीर बाल दिवस है !
26 दिसंबर 1704
की यह एक अनूठी गाथा है
दो नन्हे नन्हे भाइयों की
शहादत को जो दर्शाता है
जहां हंसते-हंसते उन्होंने इस कुर्बानी को हमे सोपा है
आज भी इस आजादी के शोर में
उनका परचम सबसे अनूठा है
पर कहते हैं ना
यह साहस भी हर किसी में नहीं दिखाई पड़ता है
पर जब मेरे गुरु गोविंद जी के साये की बात हो
तो साहस का परचम सबसे अद्भुत
सबसे खूबसूरत है
आज भी मेरे वीरों का साहस अमर है
आज वीर बाल दिवस है !-
संविधान
सुनहरे अक्षरों में लिखी
मेरे देश की आज़ादी की किताब है
मेरे देश के सेनानियों का इक अनूठा ख्वाब है
जो सच हुआ था आज
वो मेरे देश का संविधान है!!
जिसमें शब्दों का गठन हुआ था
इस संयुक्त राष्ट्र को
सह सम्मान नमन किया था
हमारे अपनों की हिम्मत की बदौलत
हमें हमारे हक़ और हमारी आज़ादी से
परिपूर्ण किया था
सच 26 नवम्बर 1949 का दिन सिर्फ
हमारे देश के संविधान बनने दिन नहीं
बल्कि हमारी सोने की चिड़िया की आज़ादी
के उत्सव का आरम्भ है
संविधान
हमारे देश का अस्तित्व,
हमारी शान है-
वो अक़्सर मज़बूत बनाती है
भ्रम का आईना तोड़
सच से रूबरू कराती है
गैरों से अपनों तक का ज़हर दिखा
फिर खड़ा होना सिखातीं है
सबक याद रखना ज़िन्दगी के
वो दिल में तुफ़ान और
चेहरे पर मुस्कान सजाएं
जीवन जीना सिखाती है-
Khwaabon ka saath hai
Dil mein ik aas hai
Gairon ki basti mein
Khud se anjaan hai
Waqt ki yeh kaisi maar hai
Jo kaanton se bhare raste pr bhi
Chalne ko taiyaar hai
Pr umeed mein maangti yeh
Bas tera saath hai
Aur kehti hai
yeh sabse gumnaam hai
Sach yeh khwaab bhi bade
kamaal hai !
Jahan gam bhi hai,pas aas hai...— % &— % &-
Zindagi ik leher si...
Waqt ki raftaar se bekhabar,
Kuch dhund rhi...
Shor ke sheher mein kaid,
Sukoon ko tarasti kahin...
Samandar se judi,
Par moh ki dharti se na dur gyi...
Zindagi ik lehar si...
Waqt ki raftaar se bekhabar,
Kuch dhund rhi...-
We are the junctures at this land...
That meets with the beautiful sky
and it's darker ends...
Struggling alone with our own selves...
Broken!
but standing firm for every national...
Confined by the rules and restrictions
Every now and then...
Camouflaged passion,
Obstructive responses,
Defensive reactions,
Made me stand rugged, staunched,
And ardent!
My glory begins
When the sunsets...
Concealed in the dark
Being armoured and vigilant
For the rest...
Dithering around
Embittered self
Amour - propre laurel
Frame's the antecedents
We are the junctures at this land...
That meets with the beautiful sky and it's darker ends...-
आज ये रात
कुछ थम सी गई है
बेचैन कर साँसे
ये मदमस्त खड़ी है
बहती हवाओं संग खिलखिला
ये हमें सता रहीं है
और कोई इससे पुछे
तो बस मुस्कुरा रहीं है
आज ये रात
इक अरसे बाद
हमसे फिर इक सहेली बन बतला रहीं है-