तुम्हें मालूम होगा, मुझे तुममें क्या सबसे ज्यादा भाता है,
सोलह श्रृंगार से भी ज्यादा खुबसुरत रूप ये सादा भाता है ।-
# 17-07-2021 # काव्य कुसुम # वाणी #
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कर्कश वाणी व्यक्ति के स्वास्थ्य व स्वभाव को दूषित करती है।
मधुर वाणी शालीनता व शिष्टता का प्रदर्शन कर मन को प्रमुदित करती है।
वाणी के सम्मोहन में जीवन के माधुर्य से व्यक्तित्व मुखर होता है।
जीवन में वाणी की दरिद्रता मन व प्रज्ञा को प्रदूषित करती है।
************** गुड मार्निग ************-
काजल, बिंदी और होठों की लाली छाया एक तरफ,
और तुम्हारे खुले लटों की बिखरी माया एक तरफ।
एक तरफ है झुमके बाली, नथिया तेरी एक तरफ,
अधरों पर जो फैल रही भीनी मुस्कान एक तरफ।
पलकें, भौंहें, माथे की वो चमक तुम्हारी एक तरफ,
गुलदस्ते- से गालों की वो लाली तेरी एक तरफ।
एक तरफ है दुनिया सारी, आकर्षण सब एक तरफ,
साड़ी पहने कमर तुम्हारी और सादगी एक तरफ।
एक तरफ है तेरा होना, जगत मोहिनी एक तरफ,
हूरों की क्या बात करूँ, तेरा आलिंगन एक तरफ।-
# 05-03-2022 # गुड मार्निंग # काव्य कुसुम #
# क्रोध # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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क्रोध व अहंकार में कोई भी काम नहीं करना चाहिए।
कोई काम करने से पहले बोली में माधुर्य भरना चाहिए।
तरकश से छोड़े तीर व जुबाँ के कड़वे बोल वापस नहीं लौटते-
कोई काम करने से पहले मन की ईर्ष्या को हरना चाहिए।
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यदि हम न चाहते हुए भी
किसी के झगड़े की ध्वनि सुन रहे हैं,
चाहे टीवी, सिनेमा के ही हों,
हमारे भाव तथा क्रिया में दूषण पैदा हो जाएगा।
हमें तुरन्त ऎसे श्रवण से दूर हो जाना चाहिए।
ऎसे आकर्षक व्यक्ति के पास भी अघिक देर न बैठें कि
उसके प्रति मन में राग पैदा जो जाए।
सृष्टि वही आपको लौटाती है,
जो आप उसे देते हैं।
अत: शब्द हमारे भाग्य विधाता हैं।
इनकी मृदुता पर हमारे जीवन की मृदुता टिकी रहती है।
मृदुता का विकल्प नहीं है।
भक्ति योग तो माधुर्य पर ही टिका है।
अन्तरिक्ष में भी ईक्षु समुद्र, मधु, दघि और घृत समुद्र है।
भीतर के आकाश की पूर्णता भी यही है।-
जो कुछ शब्द बोले जाते हैं,
उनके स्पन्दन पहले शरीर को,
रक्त को,श्वास को,विचारों
भावों आदि को प्रभावित करते हैं।
अर्थात हमारे अन्नमय, प्राणमय
तथा मनोमय कोश स्पन्दित होते हैं।
अलग-अलग इन्द्रियों पर
इनका भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है।
भीतर में हमारी भावनाओं या
नीयत का असर अघिक होता है।-
हमें जिसकी आरजू , कहीं खो रहा है वह ,
है सुकून की तलाश , कहीं खो रहा है वह !
है सोशल मीडिया पर निभाते अनेक रिश्ते ,
पर अपनेपन का भाव कहीं खो रहा है वह !
झूठा दिखावा और बड़बोला पन हैं बढ़ गया ,
सच्चा प्यारा रिश्ता ,जाने कहीं खो रहा है वह !
अहम है बढ़ गया , हो रही विश्वास की कमी ,
न जाने रिश्तो का माधुर्य कहीं खो रहा है वह !
है चेहरे पर अनेक चेहरे लगा घूम रहे लोग ,
न जाने असली चेहरा कहीं खो रहा है वह !
है धैर्य का अभाव , आया जमाना इंस्टेंट का ,
ना ठहर पाती खुशी, चैन कहीं खो रहा है वह !
अति भौतिक सुविधा की ,स्वास्थ्य से खिलवाड़ ,
निरोगी काया ,अच्छी सेहत कहीं खो रहा है वह !
है बातों का अंबार , हवा में महल बनाता है वह ,
सच्ची लगन से अमल करना कहीं खो रहा है वह!-
"माधुर्य" (जीवन शक्ति)
:
हमारा शरीर-बुद्धि-मन सब कुछ
ध्वनि के स्पन्दनों से निर्मित होता है।
जो कुछ हम बोलते हैं,उसमें स्पन्दन होता है,
सुर होता है, हमारी भावना होती है।
इसी के अनुरूप पार्थिव तत्वों को आकृष्ट करती है।
आध्यात्मिक धरातल पर रहने वाले साधक
लयपूर्ण, माधुर्य के साथ ; शान्त मुद्रा में
बात करते दिखाई पड़ते हैं।
एक विशेष रचनाधर्मिता उनकी वाणी से प्रकट होती है।
तब वाणी में जीवनदायिनी शक्ति का बोध होता है।
आप दूसरों को तथा स्वयं को
किन शब्दों से सम्बोघित करते हैं,
वे आपके जीवन का निर्माण करते हैं।-
मन मन्दिर में समता का भाव जीवन का सार। है ,
मन मन्दिर में माधुर्य का होना जीवन का अनुराग है ,
गीत प्रेम के हो ध्वनित आलोकित होगा मन मन्दिर -
मन मन्दिर का आलोकित होना जीवन का अनुराग है ।
# प्रमोद के प्रभाकर भारतीय-