अपना "हाल-ए-दिल" सुना तो सही !!
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काश अपने भी हमें कुछ सताया करते
फिर पराये रोज़ दिल में समाया करते
उनकी आँखों का नशा भी मज़ा देता कुछ
लोग फिर क्यों मय-कदों को ही जाया करते
नक़्श-ए-मसर्रत पास होता नहीं गर सबके
दिल ये अपना रोज़ किस से लगाया करते
इक तख़य्युल भी किसी का नहीं आता फिर
याद किस की अपने दिल को दिलाया करते
चश्म-ए-क़ातिल हैं सभी आँख जिसको देखो
जुर्म-ए-उल्फ़त आप किस से छुपाया करते
ज़िन्दगी में दर्द होते नहीं जो 'आरिफ़'
लोग दुखड़े अपने किस को सुनाया करते-
अपने जजबातो को जरा समझा तो सही
हो ना जाये तुझे इश्क़ तो कहना
बस तु मुझे गले लगा तो सही...!!-
जहां न हो इश्क के मारे वो मयकदा हो नहीं सकता।
मेरी मोहब्ब्त का हक तुझसे अदा हो नहीं सकता।।
तुम चाहे लाख कोशिशें कर लो मोहब्ब्त के दुश्मनों।
वो मेरे दिल से, मैं उसके दिल से जुदा हो नहीं सकता।।-
उनके आने से मयकदे में
शान आ जाती है
टुटे हुए दिल में मानो
जान आ जाती है
इश्क में हारे आशिकों का
ठिकाना है ये यारों
यहां आने से गूंगों में भी
ज़बान आ जाती है-
ख्वाबों की हद को मेरी आंकने वाले।
पैमाना बड़ा कर ज़रा मयकदे में चल।।-
मयकदों में पड़ी रह गयी मेरी लुत्फ़एजवानी
उम्र मुझे घसीटता हुआ क़ब्र तक ले आया-
उनके साथ एक पहर मयकदो में रहा
वो इशारे बहुत किए पर मैं हदो में रहा-
वो मय़कदे में जी रहे हैं मय़खानें में पी रहे हैं,
लफ्ज़ों की आड़ बैठे हम शब्दों को जी रहे हैं,-