✍️जब से देखा है, बैंगलुरू में मुझे रूद्र पलाश के पुष्पों से बेहद लगाव रहा है।✍️
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लगता है देख, हमें खुश कर वो एक नया पन्ना अपनी हसीन ज़िन्दगी का लिखते हैं।
रूद्रपलाश के सुंदर फूल कहीं पेड़ों के नीचे तो कहीं ऊंचाईयों पर खिलते दिखते हैं।
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ऊंचे-ऊंचे रूद्र पलाश के फूलों के वृक्षों पर रूद्र पलाश देख, उमंग पुनः जग रहा है।
जुलाई फिर अगस्त एवं अब सितंबर इन महीनों में बैंगलुरू बड़ा हसीन लग रहा है।
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सुबह-सुबह अन्धियारा, थोड़े सा काले बादल पहले पहर में, और कभी बारिश भी।
फिर दोपहर से ठीक पहले व बाद में हल्की धूप की, शाम में वर्षा की गुजारिश भी।
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पिछले कई महीनों से मुसलसल यह नज़ारा जैसे आंखों में छप सा गया है अब तो।
पहले से शाम में बारिश की आशंकाएं जो होती सच होती; छप सा गया है अब तो।
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कुछ जगहों जैसे कोरमंगला में ज्यादा तो जे. पी. नगर में इनके वृक्ष भले ही कम हैं।
और बाकी जगहों का मालूम नहीं पर बैंगलुरू के जगहों पर रूद्र पलाश अनुपम हैं।
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और सच है ये कि पहले से ही मुझे इन रूद्र पलाश के पुष्पों से खासा लगाव रहा है।
जो इन्हें देखते ही मेरे मन मंदिर में, सुन्दर, अच्छे व दैवीय विचारों का प्रवाह रहा है।-
✍️"शहरों के मेहनती मशीन और मज़दूर"✍️
दिन की गर्मी भले कुछ ज्यादा है पर फर्क ही नहीं पड़ता!
दिन में भी काम और रात्रि में भी काम, शहरों में चलते हैं।
दिखते जो रहते हैं मशीन भी यहाँ चलायमान मुसलसल!
मज़दूर वर्ग सभी मेहनती हैं, इससे ही उनके घर पलते हैं।-
✍️बैंगलुरू में मौसम थोड़ा बसंत सा, थोड़ा वर्षा सा व थोड़ा सर्दी के जैसा है।✍️
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मेरे कमरे की खिड़की के सामने से कुछ ही दूरी पे खड़े बादाम के पेड़ जैसे खुश थे।
मगर हल्के एवं गहरे हरे, हल्के और गहरे लाल व पीले रंग के पत्तों से लिपटे चुप थे।
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सितंबर व अक्टूबर के महीनों में, बैंगलुरू में वर्षा एवं सर्दी के मौसम सा माहौल है।
साथ ही हरियाली भी ऐसी है जैसे बसन्त भी विद्यमान है ऐसा मौसम है, माहौल है।
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और हवा का बहाव इतनी तेज भी नहीं जो इन पेड़ों के पत्तों में हलचल उत्पन्न करें।
होती है कभी पर इतनी नहीं कि ये बारिश पानी की बहाव में कल-कल उत्पन्न करें।
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सब कुछ हल्का हल्का, थोड़ी धूप, थोड़ी बारिश, थोड़ी ठण्ड है, पर प्रचण्ड नहीं है।
मौसम अच्छा है, बवंडर थोड़े ही लाता है जो ये बाढ़ भी लाए, इतना उद्दण्ड नहीं है।
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धीरे से सितंबर बीता, अक्टूबर जारी है और फिर अब नवंबर, दिसंबर भी आना है।
और फिर दिसम्बर मास के आगमन एवं गमन के साथ ही ये पूरा वर्ष बीत जाना है।
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नवरात्रि बीत गई, आज दशहरा एवं फिर दिवाली, क्रिसमस के वक्त भी सर्दी होगी।
बैंगलुरू का मौसम शुरू व बीच में कुछ अलग थी तो सर्दी में कुछ तो हमदर्दी होगी।
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उसकी तस्वीर को देखते देखते
सुबह को शाम कर दिया
और वो कहती है आजकल दिन बड़े हैं
इसलिए तुम्हे फ़ोन कर लिया।
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✍️The talented & beautiful cuckoos sing melodious songs in Bengaluru!✍️
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दोपहर के करीब का वक्त और इस वक्त भी कोयल के अच्छे गाने और सुरीला धुन।
बैंगलुरू में ऐसी भी गलियां है और उनमें से एक में मैं रहता हूँ ये मीठे स्वर सुन सुन।
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वीरान, सुनसान और सुने इलाकों में भी, इन कोयलों के गाने, प्राय: जान फूंकते हैं।
तरूओं को भी प्रेम है इन कोयलों से; इन्हें घर देने के लिए, इनके सम्मुख झुकते हैं।
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परसों की घनघोर बारिश, कल के काले मेघ व फिर आज का खुला दिन हसीन था।
लगभग ११ से ११:४० के करीब दिन में, इन कोयलों ने जो गाया, वह बेहतरीन था।
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दो चादर, एक साल और तीन कपड़े धोकर, उन्हें सुखाकर मैं नहाकर वापस आया।
प्राणायाम करते वक्त अचानक ही लंबे समय के बाद सुनकर, कानों ने सुकून पाया।
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अब तो दिन के १२ बजने को ही थे, फिर भी एक कोयल ने तो गाना ही नहीं छोड़ा।
तल्लीनता ऐसी थी, आवाज की तीव्रता भी बराबर रखा उसने एवं न ही लय तोड़ा।
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ख्वाहिश था मुझे मिल रहा है सुनने का मौका जनवरी से, और आगे भी है मई जून।
बैंगलुरू में और भी गलियां है और उनमें से एक में मैं रहता हूँ ये मीठे स्वर सुन सुन।-
"People waiting for BMTC buses remind me of my old days in Bangalore!"
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आज, जब गुजरता हूँ उस जगह से जो मेरा पहले कभी ठिकाना हुआ करता था।
जहाँ से मैं कभी बस पकड़कर अपने साक्षात्कार के लिए रवाना हुआ करता था।
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वो जगह बारंबार, सात आठ वर्ष पहले की उन यादों को यूं तरोताज़ा कर देती है।
जब नौकरी की तलाश जारी थी बैंगलोर में मेरी, उन यादों से मन को भर देती है।
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सब्जियों व फलों के ठेले और दुकानों से सजी वो गलियाँ आज भी ठीक वैसी हैं।
मैं कतराता था जाने से, माँसों के ठेले वाले जिन गलियों से, वो भी पहले जैसी हैं।
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छोटे छोटे अनेक राशन के किराने और कपड़ों के दुकानों से सजी वे बस्तियाँ थीं।
आज भी वैसी ही हैं वो बस्तियाँ जहाँ निवास करती दक्षिण भारतीय हस्तियाँ थीं।
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पेड़ पौधों से भरे बैंगलुरू में, आवागमन के लिए, बसों की व्यवस्था भी उत्तम थी।
आज भी भर भरकर बसें रूख करती हैं अनेक स्थानों की ओर दृश्य ये उत्तम थी।
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बैंगलुरू की बसों के प्रतीक्षारत लोग सड़कों पे दिखते हैं तो वो दिन याद आते हैं।
खड़े खड़े उन राहों में, मैं भी हुआ करता था उनके बीच, वो यादें निकाल लाते हैं।-
ये जलता हुआ शहर
ये उजड़े हुए शजर
ये तबाही का मंजर
ये अधजला बशर
गर मीज़ान से तौलें तो हमारी नेकियां भी कम पड़ जाएंगी
आज हमारी इंसानियत पर मजहबी आग भारी पड़ जाएगी
कुछ और जलाना है तो जला डालो यहां पर किसी को घंटा कुछ फ़र्क नहीं पड़ता है
ये देश जितना हमारा है उतना ही तुम्हारा है ये सब राख होने के बाद पता चलता है
ये शहर, ये जहान, यहां रहने वाले सब अपने हैं या पराये हैं ये तो पता लगाया होता
आग लगाने से पहले ये बात इक बार अपने दिल से पूछी होती तो कितना अच्छा होता
K K-
✍️"Lord Surya is playing a game in collaboration with rain in Bengaluru!"
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गर्मी की बारिश में, ये फुरसत मानो गुम थी कहीं कि बरकत भी ज़रा खोने लगी थी।
काले मेघ दिन में, तो घूमने की हसरत भी खामोश थी, खामोशी में ही रोने लगी थी।
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मिली छुट्टियों ने वे दिन भी लाए सप्ताहांत में जो मन में, बीज हर्ष की बोने लगी थी।
हाज़िरी भी जरूरी नहीं थी, जो खुद से ही थी यह जगज़ाहिर, खुद से होने लगी थी।
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कि ये छुट्टियां देख हसरत हुई है जब से घूमने की, ख्वाब भी तब से दंग होने लगे हैं।
पर काले मेघ देख स्तब्ध व मन तो मन, अब तो दिलोदिमाग़ में भी जंग होने लगे हैं।
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आसपास की जगहों का अवलोकन करना भी अब कुछ दिनों से बाधित हो गया है।
आजकल, बैंगलुरू में मौसम ठीक बारिश के दिनों जैसा, गर्मी निर्वासित हो गया है।
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अचानक ही दिन में भगवान सूर्यदेव के दर्शन, और फिर उनका यूँ अदृश्य हो जाना।
कुछ देर और फिर दोबारा उनके दर्शन से आकाश का सुन्दरतम परिदृश्य हो जाना।
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कुछ देर से ही सही पर सूर्यदेव की किरणें शरीर का स्पर्श करना आरंभ कर देती हैं।
पर वो जैसे बारिश के समर्थक हों तभी बीच में ये अपना काम शुभारंभ कर देती हैं।-