KABIR KARTIK K K   (©️ KABIR KARTIK)
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Joined 21 April 2020


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Joined 21 April 2020
2 JAN 2022 AT 12:43

यकुम थी जनवरी की लिहाज़ा जश्न में निकल गई

अब पूरे साल जश्न की तवक़्क़ो तो नहीं की जा सकती

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20 JUL 2021 AT 18:34

मुद्दतों लिखता रहा हूं किसी किताब की तरह उसे

जो छपकर तैयार हुई तो ऐरे-ग़ैरे भी पढ़ने लगे उसे

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1 JUL 2021 AT 16:43

फ़क़त इक यही फ़न उसे औरों से जुदा करता है

सिर्फ़ तबीब‌ ही मौत को ज़िंदगी में तब्दील करता है


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26 JUN 2021 AT 22:20

पोखर के पानी सा अच्छा तो समन्दर सा खराब हूं मैं

किसी के लिए शीतल जल तो किसी के लिए तेज़ाब हूं मैं


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20 JUN 2021 AT 10:36

तामीर मयस्सर हो ना हो मगर एक सायबान होना चाहिए

कोई और हो ना हो पर बाप जैसा निगहबान होना चाहिए


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19 JUN 2021 AT 19:32

एकबारगी फिर वही इक चेहरा याद आ जाता है

जब कोई कहता है तुम्हें मुझ पर ऐतबार नहीं है क्या


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5 JUN 2021 AT 10:56

बिन शाख़ के दरख़्तों में हम यूं छांव ढूंढते रहे

गोया पराए शहर में हम अपना गांव ढूंढते रहे

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20 MAY 2021 AT 23:26

तेरे लिए अलग से अज़ाब तय किए होंगे ख़ुदा ने 'शान'

तूने बहुतों के दिल दुखाए हैं सिर्फ़ ख़ुद की खुशी के वास्ते


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14 MAY 2021 AT 21:28

फ़लक पर चांद दिखा , फिर ईद हुई , और ईदी भी मिली

सिर्फ़ इक उससे गले मिलने की हसरत इस बार भी अधूरी ही रही

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8 MAY 2021 AT 22:27

हर इक शख़्स है यहां गिरफ़्त में ‌उसकी

अलामात भी उसके कोरोना से कम नहीं

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