एक स्त्री,
स्वयं को खोल कर,
प्रेम करती है,
उपेक्षित होने पर,
वो बंद हो जाती है,
ख्वाब बुनने से,
वो सागर को देखती रहती है,
और फिर मुड़कर,
अपने घर लौट जाती है।-
जो कहा ना गया वो बस लिख दिया है
जुनूनी बाते,
जिनमे सच्चाई से कुछ ज्यादा,
ख्वाब पलते है,
मै जानती हूं,
ये इतना मुश्किल नहीं,
जितना मुझे लगता है,
पर मुझे हसीन ख्वाबों से,
थोड़ी दूरी ठीक लगती है..
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चुनाव का समय आते ही,
दल बदलने लग जाते है,
जनता के मत मिलने से पहले,
वो अपनी जीत का दांव खेल जाते है..-
अगर तुम्हारे कहे और करे में फर्क होगा,
तो मुझे माफ करना,
मैं किए सारे वादे निभाने में,
असमर्थ हो जाऊंगी..-
अस्तित्व पर लगी चोट,
जीवन में आगे की ओर ढकेल देती है,
या अतीत के गहरे सागर में छोड़ देती है..
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तुमसे मिलके ऐसा लगता है,
जैसे जिंदगी से गले मिले हो,
और इसकी सुबह हो गई हो,
जिस प्रकार इंतजार होता है,
पूरे संसार को रोशनी देखने का,
एक पूरे अमावस के बाद,
तुम उस काली रात के,
सवेरे हो गए हो...-
धर्म को बचाने की,
ये कैसी रीत चली है?
किस परछाई को पकड़ने ये दुनिया चली है!
मानवता मूल्यों को छोड़,
ये किसे बचाने निकले है!
किसे संभालने के लिए,
खुद को गिराने पर लगे है!-
मैं किसी सा होना चाहु,
तो हो जाऊ तुम्हारे जैसा,
जिसमे ऐब है,
पर खुद पर रौब है..-
दबा हुआ कुछ नही,
जो है सब जाहिर है,
जो हमने कहा भी नही,
उससे भी आप वाकिफ है..-
अकेले क्यों चलना पड़े,
जब साथ कोई जी जान लगा कर देना चाहे,
उसकी याद में क्यों मरे,
जब साथ कोई जिंदगी यादगार करना चाहे!-