"बेटी विदाई और पिता का दर्द"
गूँज रही शहनाई मन में, दिल सहम-सा गया है,
बेटी होने जा रही विदा, पिता का दिल बैठ रहा है।
जिसको पाला नाजों से, उसका संग अब छूट रहा है,
न रहे कमी कोई विवाह में उसके, वह नंगे पैर दौड़ रहा है।
एक पल का चैन न उसको, न ठहर वो क्षण भर रहा है,
मुस्कान रखे होंठो पर अपने, हितों का स्वागत कर रहा है।
दिख न जाये आँसू उसके, वह घुट-घुटकर आंसू पी रहा है,
उसकी माता के वो अश्रु देख वह, ख़ुद में खुद से टूट रहा है।
व्याकुल मन भटक रहा उसका, बेटी की तरफ देख रहा है,
कैसा होगा "ससुराल" उसका?, ये सोच के दिल उसका सहम रहा है।
जिसकी हँसी से घर हर कोना गूंजता, अब वह सन्नाटों में बदल रहा है,
"क्यों" रीति बनाई "बेटी विदा" की, "पिता" ये हर पल "रब" से पूछ रहा है।
"कौन" अब "पापा" की रट लगाएगा?, ये सोचकर वह बिखर रहा है,
गूँज रही "शहनाई" घर में, उसके दिल का घर टूट रहा है।-
" बेटी की विदाई"
पापा की लाडली बेटी जो आज कैसे पराई है
मां का दिल टुकड़ा और भाई की वो परछाई है
बाप ने जिसे संजोए रखा किसी सुन्दर फूल की तरह
आज बगिया उजड़ रही ज़माने ये कैसी रित बनाई है
छोटी छोटी ज़िद पूरी होती थी उसकी जिस अंगना में
उसी अंगना से बाबुल की चिङिया की हो रही रिहाई है
जिसको कभी पाला नाजो से उसका संग अब छूट रहा
कठोर दिल का बाप रो पड़ा ये कैसी बेटी की विदाई है-
""कन्यादान""
"हाल हुआ बेहाल व्यक्त न होती पीर
बेसुध हो वो देखता भर नैनो में नीर"
पाला ज़िसको हृदय लगाकर
गरम हवा न लगाने दी
अपनी उस नन्हीं गुड़िया को
सौंपता है जब एक पिता
कितनी कठिन स्थिति होती
जानता है बस एक पिता
जब तक हैं लोटे मे पानी
तब तक साथ हमारा है
भली भांति जानता है वो
बिटिया को दूर देश अब जाना है
हर फेरे से दूर हो रही
खत्म हो रहा सब अधिकार
हो रही बिटिया पल पल पराई
हाय! निठुर ये घड़ी क्यूँ आयी
क्यूँ आखिर ये रीत बनाई
होती क्यूँ बेटी की विदाई
अपने कलेजे के टुकड़े को
करता खुद से दूर पिता-
"बेटी"
क्या बेटी की विदाई के बाद हमारी कोई जिम्मेदारी नही??? बेटी पर तो ये जिम्मेदारी शब्द का बोझ आ जाता है कि अब वो ही तुम्हारा घर है. माँ पिता की इज्ज़त पर आंच न जाने देना... क्या हम विदा करके मुक्त हो जाते हैं कि चलो एक जिम्मेदारी ख़त्म???? जब बेटी पापा कह कर आवाज़ दे..
ये मुमकिन नही उस सुकूं के एहसास को अल्फाज़ दे...मन के भावों से सुसज्जित कर मासूम सी रचना पेश करने की कोशिश है ! सचमुच बेटियों के बिना घर खंडहर प्रतीत होता है!एक दिन नन्ही कली अपने ससुराल चली जायेगी... यह सोचकर मन व्यथित हो उठता है।नन्हीं प्यारी बेटियाँ कब बड़ी हो जाती हैं...पता ही नहीं चलता! अपने ज़िगर के टुकड़े को कुछ सालों बाद अनजान हाथों में बिलकुल नये परिवेश में भेजने की कल्पनामात्र से हीं दिल भारी हो जाता है....ढेर सारे संशय मन में घर कर जाते हैं....!बेटी को विदा करने का विचार ही भावनाओं के तार झंकृत कर देता है ये भाव वो ही समझ सकता है जिन्होंने बेटी को जन्म दिया है... लिखते वक्त भी यूं प्रतीत हो रहा है जैसे आज ही हमारी बच्ची की विदाई हो... मन भर आया.. विडंबना है अपने ही हाथों से अपने कलेजे के टुकड़े को हम अंजान हाथों में सोप देते हैं.. कहते हैं बेटी पराई है... दिल के टुकड़े को खुद से अलग करें ये रीत किसने बनाई??-
कैसा ये विधि का विधान
क्यूँ होता है कन्यादान ?
अनुशीर्ष्क में पढ़े....-
देख लो, दुनियाँ वालों ने यह कैसी प्रथा चलाई है,
बेटी की विदाई में बाप ने उम्र भर की कमाई गंवाई है।-
ओ माली! ओ माली! तेरा गुलशन हुआ है क्यों खाली।
सब के घर में दीप जल रहे, तेरी सूनी है क्यों दिवाली।।
खून-पसीने से सींच कर लहराया तू मन की फुलवारी।
आज उसी एक फूल की तू क्यों न कर पाया रखवाली।।
जिसमे निस दिन रहे महकते, सतरंगी सुमनों की क्यारी।
आज उसी उपवन की देखो हालत गजब बना डाली।।
भीगे हुए अश्रु नयनों से, कातर नजरों से निहार रहा।
हाथ उठा कर विनय कर रहा, लगता है कोई सवाली।।
व्यथित हो गयी मन की वाटिका, सूख गयी हरियाली।
देखो कैसे बेजान खड़ा है बिना पुष्प के वह एक डाली।।
आया एक जौहरी उसके घर से ले गया वह पुहुप रतन।
एक से बढ़कर एक रतन थे, बेटी से रिक्त हुआ रत्न-माली।।
-
बेटी की विदाई
इंतजार था जिसका कबसे, आज घड़ी वो अाई है,
पाला था जिसको नाजो से, आज करनी उसकी विदाई है।
हालांकि खुशी भी है बहुत, पर बेटी के जाने का ग़म भी है,
आखिर में एक बाप ही हूं, इसलिए थोड़ी आंखे नम भी है।
बिन मांगे जिस बेटी की ,सब मांगे पूरी करता था,
चोट लगे गर उसको तो , आंखो में पानी भरता था।
करता था जिसको प्यार बहुत, जिसको लाड लड़ाता था,
एक इशारे पर बेटी के, सारी मांगे पूरी कर जाता था।
खुद के ध्यान से ज्यादा जो, मेरा ध्यान रखती थी,
काम कहे पापा जो भी, झट से पूरा करती थी।
वहीं बेटी है देखो आज , हमको यूं छोड़े जा रही है,
पर देखो उसकी आंखो को, वो भी निर उनसे बहा रही है।
है रीत यही मेरी बेटी, इसलिए तुझे जाना होगा,
ससुराल में जाकर अब तुझको,अपना संसार बसाना होगा।
है दुआ यही रब से मेरी, जो दिए वो आशिर्वाद फले।
सास ससुर से मिले प्यार, मां बाप की कभी ना कमी खले।
ना जाने क्यों विधाता ने , ये ऐसी रीत बनाई है,
जिस बेटी मै जान है बस्ती, हो जानी एक दिन वो पराई है।-
आपकी गोद में पली -बढ़ी
होकर जुदा तुमसे
किसी और के घर चली जाऊंगी..☺️
परिवार से हो रही हूं दूर😔
ये बात कम थोड़ी है
अब न नाराज हो पाऊंगी तुमसे
भैया बहन को न खीझ दिखा पाऊंगी।।
याद आएगी अगर तो नजदीक से नहीं सुन कर फोन से हाल सुन पाऊंगी
हो रही हूं दूर तुमसे
ये बात कम थोड़ी है
..
चहरे पर खुशियां हैं बहुत😊💐
पर दिल में कहीं छुपा बैठा है गम
मां पापा से हो रही हूं जुदा
ये बात कम थोड़ी है।।
नैनों से निकल रहे हैं आंसू😰 न कर पा रही हूं रोकने की सिलाई
अपने परिवार से हो रही हूं जुदा
ये बात कम थोड़ी है
नए परिवार का हिस्सा बन कर 🤗🤗
होंगी बहुत जिम्मेदारियां, मैं चलूंगी सबको साथ लेकर रखूंगी मान अपने परिवार का
ये जिम्मेदारियां हैं निभाना है इनको
सीखा है परिवार से
अब दूर होकर हर रिश्ते को निभाऊंगी
ये जिम्मेदारियां हैं
ये कोई बात कम थोड़ी है।।
आएगी याद आप सबकी
मैं कैसे खुद को समझाऊंगी
हो रही हूं जुदा सबसे
मैं कैसे खुद को खुश रख पाऊंगी।।
जीवन में आएंगे बदलाव मैं कैसे तुम सबसे कह पाऊंगी
-