Mukesh Sokhal   (✍️Sokhal_saab)
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Joined 9 July 2020


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17 OCT 2023 AT 22:53

तुम से तुम तक एक सफ़र था हमारा
फिर न जानें कहां खो गया राही बेचारा

मंजिल ना मिली हमें हमराही के साथ
एक दिल था वो भी रह गया आवारा

आने से तेरे जैसे एक नई सुबह हुई हो
फिर जाने से जैसे दिन ढल गया सारा

एक शाम आओगे पर हम न मिलेंगे तुम्हे
लोग कहेंगे शायद तड़प के मर गया बेचारा

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15 OCT 2022 AT 23:30

"मेरी कलम"

मेरी कलम तुम ही मेरे शब्दों की आवाज़ हो
तूम ही मेरे इस टूटे हुए दिल के अल्फ़ाज़ हो

तेरी दुनियां में खोकर अपनी जिंदगी संवार लेता हूं
तुमसे ही सारे अधूरे ख़्वाब कागज पर उतार देता हूं

तुम तन्हाई की साथी मेरी, तुम सकून का अहसास हो
तुमसे रफ्ता रफ्ता दर्द लिख दिया जो दिल के पास हो

कलम से कवि की आज भी एक अनकही जंग जारी है
सब हथियार एक तरफ, कलम पूरी कायनात पर भारी है

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20 SEP 2022 AT 9:28

"मन का सुकून"

मन का सुकून न जानें अब मिलता कहां है
जिंदगी के फटे हालात दर्जी सिलता कहां है

धीरे धीरे मिट गई सब खुशियां ज़माने के साथ
अब इस बंजर ज़मीन में फूल खिलता कहां है

ज़माने के कहने पर कैसे छोड़ दे ये कोशिशें
बिन हवा के "पेड़ का पत्ता हिलता कहां है"

किसी रोज उमड़ेगा सैलाब अपनी जीत पर भी
तन्हा ही लड़ना पड़ेगा ऐसे हक मिलता कहां है

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16 MAY 2022 AT 23:06

दिल करता है नादानियां पर हमें समझ कहां आती है
ये मेरी आंखें तेरी तरफ देख के जैसे ठहर जाती है
इस गर्मी के मौसम में ऐसे ही धूप से बेहाल है हम
ऊपर से आपकी ये अदाएं हमारी तो जान ले जाती है

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31 MAR 2022 AT 22:23

सपनों के पुल बनाए हमने अपने आशियाने के लिए
पर हमारा मकान कच्चा ही रहा इस ज़माने के लिए

रोज बिखरते रहे जो ख़्वाब हमारे आहिस्ता-आहिस्ता
सब कुर्बान हो गए तेरी चौखट पर तुम्हे पाने के लिए

हमने एक बार नहीं कई बार पूछा तुमसे क्यों रूठे हो
हम तो गुलाब भी लेकर आए थे तुम्हें मनाने के लिए

पर तेरा पत्थर दिल क्या समझेगा इस पागल का दर्द
यह पागल तो मर भी सकता है रिश्ता निभाने के लिए

मजबूर न करेंगे तुम्हें की तुम बांधे रखो रिश्ते की डोर
पर तू एक बार वापिस तो आ अपनी यादें ले जाने के लिए

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15 AUG 2021 AT 17:15

मत भूलो इस आज़ादी को तुम ये ऐसे ही नही आई थी
मां भारती के कितने वीर सपूतों ने अपनी जान गंवाई थी

खड़ा भारत विशाल भुजाएं फैलाए इसकी भी कहानी है
इसकी बेटी गोरों से भी लड़ पड़ी वो लक्ष्मीबाई मर्दानी है

महात्मा, सुभाष,सरदार, आंबेडकर इन सब को हम जैसे भूल गए
"रंग दे बसंती" गा के भगत, राजगुरु, सुखदेव फांसी पर झूल गए

एक पिस्तौल लेकर आज़ाद अनगिनत अंग्रेजी राइफलों से भी लड़ गया
जब बची आखरी गोली तो "वंदे मातरम्" कहकर मौत के भेट चढ गया

जब जब जाहिलो ने मां भारती के दामन पर गंदी नजरें उठाई है
तब तब मां के वीर सपूतों ने उनकी आखों को गहरी नींद सुलाई है

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1 AUG 2021 AT 17:41

यारों की इस दुनियां में हम भी मिलने आए है
इतने दिन आ ना सके इसलिए माफ़ी चाए है

हम तो इस बगिया का साधारण सा फुल है बस
YQ ने इस बगीचे में न जाने कितने गुलाब सजाए है

वक्त के साथ अनजान से दिल व ज़िगर के टुकड़े हो गए
हमने तो यहां सभी दोस्त अनमोल कोहिनूर ही पाए है

इतनी तारीफ़ के बाद भी हमें डाट लगाए तो अब
इन सबकी डाट से तो बस भगवान ही बचाए है 🙏😂

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20 JUN 2021 AT 21:54

ज़िंदगी के दुखों की धूप ना लगी कभी पिता की छांव में
मां ने आंचल बिछाया पर कांटा न चुभने दिया कभी पांव में

पिता ही दुनियां में इस आजाद परिंदे के लिए खुला आसमान है
उनके कंधों की मज़बूत नीव पर ही खड़ा मेरा खूबसूरत मकान है

इस बगिया के वो है बागबाँ हम फूल महफूज़ है उनके हाथों में
प्यार से मुरझा ना जाए फुल मेरे इसलिए डांटते है बस जज्बातों में

मेहनत के पसीने की बूंदों से सींचकर मुझे खिलता हुआ गुलाब किया
ख्यालों में भी मेरा ख़्याल रखा धुप में जलकर पूरा मेरा हर ख़्वाब किया

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7 JUN 2021 AT 8:25

इस सम्मान हेतु कोरा कागज़ टीम
बहुत बहुत आभार आपका 🙏🙏🌺🌺

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5 JUN 2021 AT 21:13

ढलती शाम में चहरे पर उनके जुल्फों के बादलों का साया था
वो ख़ूबसूरत शाम मेरी जन्नत थी जब चांद मेरे पास आया था

रोशन थी दिल की गलियां सारी वो लम्हा कितना रंगीन था
बारीश के मौसम में इंद्रधनुष आहा! नज़ारा कितना हसीन था

ख्वाबों का ज़िक्र हो हमेशा तब वो दिलकशी शाम नज़र आती है
दर्द की इन काली घटाओं में उन यादों की रोशनी दिल बहलाती है

वो आख़िरी शाम थी हमारी इसका अस्बाब मोहबब्त की रुसवाई थी
हल्की बारिश में डूब गई कश्ती हमारी लगता है कागज़ की बनाई थी

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