बदलती बेरहम बयार है,
बंदा बहकता बेहिसाब है!
बचा-खुचा बचपना भी बिता,
बदहवास बंदगी बेपनाह है!
बगिया में बादशाहत बलात है,
बगुले बुलबुले बदनाम है!
बिछाई बिसात बुज़दिलों ने,
बेख़बर बेचारा बागवान है!
बुलंद बाहुबली की बेहयाई,
बेहूदा का बराबर बाजार है!
बचो बेढब बहुरूपियों से,
बाधा है, बहकावा है, बिगाड़ है!
बेसबब, बेपनाह बेअखियार,
बेवजह बहाने की बुनियाद है! __राज सोनी-
बेखबर है वो,👈
जो चले हैं जन्नत🚶पाने,
इत्तला कर दो उन्हें,
की मां घर पर ही है....✍️
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ना थी हमें अब
अपने हाल की खबर
देखते रह गए वही रहगुजर
धीरे-धीरे खत्म होती गयी जिंदगी
बिखरते धुएँ में अरमानो के
हम रह गए यूं ही बेखबर-
जाने कब तलक गुजरेगा वो दिल से तेरे होकर...
एक दर्द जो जाने कब से बैठा है मेरे अंदर।
जीते हैं यू ही टुकडों मे हम रात दिन अक्सर ...
जो देखे हाल ये मेरा वो सौदाई है बेखबर।-
हमारी चाहतों से तो वो बेखबर है,
फिर भी न जाने क्यों ? हमारे दिल में, उनसे डर है।
अब बस, नज़रें बचा कर चलते हैं हम उनसे,
लगता है, मिल गई तो क्या ? कहेंगे हम उनसे।।-
शायद! तुम बेखबर हो, हमारी निगाहों की मोहब्बत़ से।
बस! तुम अंजान ही रहना, वरना, मजा़ न आऐगा,
हमें, सरे आम, मोहब्बत़ करने में।।-
कितना अजीब जिंदगी का सफ़र निकला,
सारे जहां का दर्द अपना मुकदर निकला..!
जिसके नाम अपना हर लम्हा कर दिया,
वहीं हमारी चाहत से बेखबर निकला..!!-
हर शख्स से नजरें मिलाते क्यों हो?
हस-हस के सबसे बतलाते क्यों हो ?
तेरा सबसे यू करीब होना पसंद नहीं हमें,
तुम हरदम मुझे सताते क्यों हो..???
अपनी दरियादिली दिखाते क्यों हो ?
मोहब्बत की तारीफ़ बताते क्यों हो ?
हम वो हैं जो जान दे दें तेरे लिए,
तुम हर वक्त हमें आजमाते क्यों हो..??-
"बेखबर" सी थी,
वो "इश्क" से,
फिर भी उसे ,
मेरी "खबर" थी,
ये "असर" था ,
"इश्क" का,
जिसकी उसे,
"खबर" ही ना थी....-