शाम होते ही जलते है चिराग
हथेलियों में
ख्वाब बनकर रहते है यादों के मंजर
अंखियों में
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कहीं से कहीं पर
चले आओ बेवजह तुम भी
वहीं से वहीं पर
रुके आकर बेवजह हम भी
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तेरे लफ्ज़ो की महक से
तेरी हर शिकायत के साथ
तेरे बेपरवाह खयालों से
तेरी हर मुस्कान के साथ
मोहब्बत तो तब भी थी-
तकती रही राहें मैं तेरी सहर से
मगर पल पल ये उदास करती रही
ये दूरियां कम नहीं हुई और तन्हाईयों के
और भी पास करती रही
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दूरियां थी न जुदाई थी
तेरी नजदीकियों के वो लम्हें में भी
तन्हाई थी
आखिरी लम्हों की कहानी भी
कितनी अलग थी
आँखे मिल रही थी
पर राहें जुदा थी-
ए मनाली हर लम्हा मैं, मेरी इन आँखों में सैलाब रखती हूँ
तेरे जाने के बाद, तुझे क्या मालूम कितना याद करती हूँ
रोज चले जाते है ये कदम, उस दर्द-ए-मंजर के समन्दर में
फिर बैठ कर किनारे मैं, इन अश्कों को आजाद करती हूँ
वो खौफ का आलम, वो हाल -ए-बेहाल बड़ा सताता है
फिर बेबस सी अकेले मैं, यूँ खुद को दर्द -ए-आग करती हूँ
कमबख़्त अश्कों के दरिया मेरे, बहते ही रहते है हर वक्त
कैसे कहूँ ए बहन, के तुझे अब भी कितना प्यार करती हूँ
ऐ काश! कुछ कर गुजर जाते हम, रोक लेते तुझे जाने से
क्यों मांगा तुझे खुदा ने, अफसोस ये मैं बार-बार करती हूँ
ए मनाली हर लम्हा मैं, मेरी इन आँखोंमें सैलाब रखती हूँ
तेरे जाने के बाद, तुझे क्या मालूम कितना याद करती हूँ
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कुछ मीलों के फासलों पर
शायद कर रहा है तेरा इंतजार कोई
इंतहा हो गई तुझे पुकारते
कर दे खबर उसे एक बार कोई
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कुछ खामोशी..कुछ वादे ..
कुछ खफा से तुम..
कुछ जिंदगी.. कुछ सांसे ..
कुछ तन्हा से हम ..-