बन नवाब सर्दी है आयी, निकली सबकी आह
बच्चे, बूढ़े, और जवां सब, तकें सूर्य की राह....।।
छिप सूरज बादल में खेले, आँख-मिचौली खेल
बर्फ़ ओढ़ तरुवर दिखते हैं, श्वेत दिखे ज्यों रेल
छुपकर बैठे विहग नीड़ में, दबा भूख की चाह
बच्चे, बूढ़े और जवां सब, तकें सूर्य की राह
बन नवाब सर्दी है आयी, निकली सबकी आह ...।।१
सर-सर करते पत्ते सारे, सुना रहे हैं गीत
बनी हवाओं की कुहरों से, सभी बने हैं मीत
जाने क्यों बेदर्दी सर्दी, करती हमसे डाह
बच्चे, बूढ़े और जवां सब, तकें सूर्य की राह
बन नवाब सर्दी है आयी, निकली सबकी आह ...।।२
हुआ परेशां कोई जन तो, कोई हुआ निहाल
ठाठ अमीरों की बन आयी,मुफ़लिस पड़े निढाल
सुन्न पड़ा है तन उनका पर, मुख से रहे कराह
बच्चे, बूढ़े और जवां सब, तकें सूर्य की राह
बन नवाब सर्दी है आयी, निकली सबकी आह ...।।३
बूँदें शबनम की इठलायीं, है पत्तों पर राज
हरी दूब फूलों से मिलकर, बना रहीं नव साज
हुए नदारद आज भानु तो, इनकी ख़ुशी अथाह
बच्चे, बूढ़े और जवां सब, तकें सूर्य की राह
बन नवाब सर्दी है आयी, निकली सबकी आह ...।।४
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छुट्टी के दिन घर से निकले, टॉम एंड जेरी हाट
फर्राटे से लगे नापने, सीधी सड़क सपाट
जमकर खाया टॉम पकौड़े
जेरी पिज़्जा पाव
चटखारे लेकर वह बोला,
फेर मूँछ पर ताव
देखेंगे हम आज सिनेमा, फिर खाएँगे चाट
छुट्टी के दिन घर से निकले, टॉम एंड जेरी हाट
इतने में ही पड़ी दिखाई,
लाल रंग की कार
ऑडी में था मूँछो वाला,
मोटा शेर सवार
सरपट भागे वो सिर के बल, भूल गए सब ठाट
छुट्टी के दिन घर से निकले, टॉम एंड जेरी हाट
भूल हेकड़ी सरपट भागे,
दोनों घर की ओर
जा टकराए डिवाइडर से,
हुआ जोर का शोर
जेरी की हड्डी टूटी थी, लगी टॉम की वाट
छुट्टी के दिन घर से निकले, टॉम एंड जेरी हाट
जेरी जोरों से चिल्लाया,
दौड़े आया टॉम
पूछा इतना शोर कहाँ से,
ब्लास्ट हुआ ज्यों बॉम
नींद खुली तब जेरी समझा, घर की है यह खाट
छुट्टी के दिन घर से निकले, टॉम एंड जेरी हाट
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उजियारा पूरब में छाया,
मुर्गा बाँग लगाता है।
सोने के रथ बैठ सवारी,
सूरज हँसता आता है।
शीतल ठंडी भोर सुहानी,
चहक-चहक चिड़ियाँ चहकी।
पुरवाई के झोंके लेकर,
कुंज-कुंज कलियाँ महकी।
ताल तलैया के कमलों पर,
भँवरा राग सुनाता है।
ओस चमकती मोती जैसी,
धरती पे किरणें बिखरी।
चमक सुनहरी जग में फैली,
हरियाली चूनर निखरी।
अब तो जागो आलस छोड़ो,
दिन भी निकला जाता है।
बस्ता लेकर शाला जाते,
नन्हे ये बाल सलोने।
आँगन में दादी भी आकर,
माखन को लगी बिलोने,
बारिश में सब दफ्तर जाते,
लेकर अपना छाता है।-
ज़रा सुनिए तो-(बाल गीत-3)
लोकतंत्र
लोकतंत्र में जनता राजा
बहुमत का है बजता बाजा
जनता भेजे चुन कर नेता
जो जनमत को स्वर है देता
संसद को सांसद महकाते
विधान सभा विधायक जाते
लोकहित में कानून बनाते
उन्नति पथ पर देश बढ़ाते
पांच वर्ष बाद चुनाव आते
उम्मीदवार खूब लुभाते
जिस दल का है बहुमत आता
सरकार को है वही चलाता
इस तरह बनती सरकारें
इस तरह चलती सरकारें
लोकतंत्र की जय पुकारें
आओ मिल कर देश संवारें-
बाल-गीत
नई किताबें, बोतल, बस्ता, खुशी-खुशी संग लाये हम।
अब तक हमने घर में सीखा, अब स्कूल है आए हम,
1. पापा ऑफिस जाते है,
भैया कॉलेज जाते है,
दीदी जॉब पे जाती है,
मम्मी घर को सजाती है।
घर में खाली बैठ खेल कर कब तक दिल बहलाये हम।
अब तक हमने घर में सीखा, अब स्कूल है आए हम,
2. अ आ इ ई सीखेंगे,
A B C D सीखेंगे,
1 2 3 4 सीखेंगे,
Music Class में गाएंगे।
कैसे??? ऐसे!!!!!
सा-रे-ग-म-प-ध-नि-सां
मिलजुल कर हम साथ पढ़ें और हिलमिल खाना खाएं हम।
अब तक हमने घर में सीखा, अब स्कूल है आए हम,-
ज़रा सुनिए तो-(बाल गीत-2)
आम
देखो आम फलों का राजा
चाहे बासी हो या ताजा
मीठे रस से भरा रसीला
लाल हरा सन्तरी पीला
राष्ट्रीय फल है ये हमारा
समस्त फलों में श्रेष्ठ न्यारा
ये चौसा, लँगड़ा, बादामी
है हापूस, दशहरी नामी
सेवन इसका अपच भगाए
नयनों की ये नज़र बढ़ाए
ऊर्जा संचार तन में होता
रोग निरोधक क्षमता बोता
जब आम बाजार में आते
रेहड़ी दुकान हैं सज जाते
अमीर गरीब चाव से खाते
आम-पापड़ आचार बनाते-
ज़रा सुनिए तो-(बाल गीत-4)
खेल
आओ साथी खेलें खेल
खेल बढ़ायें आपसी मेल
तन में स्फूर्ति की दौड़े रेल
सुस्ती जाए लेने तेल
मिलकर काम करना सीखें
बाधाओं से लड़ना सीखें
मुसीबत से न डरना सीखें
डूब न जायें तरना सीखें
नेतृत्व के ये गुण सिखाते
हार कभी जीत दिखाते
बैर-भाव को दूर भगाते
जीवन को हैं सुखद बनाते
आओ साथी खेलें खेल
खेल बढ़ायें आपसी मेल-
रेल
छुक-छुक चली अपनी रेल,
आओ मिल-जुल खेलें खेल।
पकड़ों चोर, भेजो जेल,
भरी कड़ाही, गरम तेल।
छुक-छुक चली अपनी रेल,
स्टेशन आया रूक गई रेल।
देर न कर चढ़ जा रेल,
सीटी बज गई चल दी रेल।
छुक-छुक आई अपनी रेल,
सिगनल देख चली दी रेल।
रेल में बैठो खाओ भेल,
आपस में रखना हेल-मेल।
© नवीन कुमार 'नवेंदु'
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ज़रा सुनिए तो-(बाल गीत-7)
परिवर्तन
कभी ज्यादा तो कभी कम है
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
समय संग सब कुछ है बहता
एक सा कुछ भी नहीं रहता
सोचो जो न मौसम बदलता
कितना ये हम सबको खलता
सर्दी में गर्मी की आस है
फिर आ धमकती बरसात है
अंकुर पौधे बन जाते हैं
पेड़ों पर फल उग आते हैं
जड़ - चेतन बच नहीं पाते
सब इसके आगे सिर झुकाते
अगर परिवर्तन नहीं होता
जीवन कितना नीरस होता-
ज़रा सुनिए तो-(बाल गीत-11)
पेड़
आखों को खूब सुहाते पेड़
धरती को स्वर्ग बनाते पेड़
पक्षी शाखाओं पर घर बनाते
जीव छाया में सुरक्षा पाते
वायु में शुद्धता लाते पेड़
सांस को सहज बनाते पेड़
बर्षा के जल को हैं सोखते
भूमि के क्षरण को हैं रोकते
पारे को चढ़ने नहीं देते
प्रदूषण को बढ़ने नहीं देते
कागज़ गोंद रबर दिलाते पेड़
कन्द-मूल फल हैं खिलाते पेड़
हर वर्ष बन महोत्सव मनाएं
बच्चो पेड़ ज़रूर लगाएं-