ज़रा सुनिए तो―
गर्मी ही गर्मी है।
पौण¹ रचे साजिश,
बद्दळ बेधर्मी है।
1. पवन-
झोटुआँ दी जंग, बूटेयाँ दा होए नास भगता।
पंछियाँ दे जाह्ण आह्ले, जीव जंतु उदास भगता।
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ज़रा सुनिए तो―
कोई हसदे ताँ कोई रोई जाँदे
सिरैं रक्खी बोझा अपणा ढोई जाँदे
टेढ़ा-मेढ़ा कुआलू, करड़ा एह् जीणा
कोई रुकदे नीं, कोई खड़ोई जाँदे
कसमा-वादे होंदे बस ग्लाणे ताँईं
अक्सर मौके पर एह् परतोई जाँदे
करदा-धरदा ताँ है उप्पर वाळा ही
माह्णू बस ऐमें ही फणसोई जाँदे
माड़ेयाँ टैमाँ किह्ले छड्डी नह्सण
आई वाह्बो बग्तैं, नड़रोई जाँदे
जितणे भी सुआँग धरी नै ओए कोई
माह्णू ताँ चालाँ ते पछणोई जाँदे-
श्री गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी पर्व चौमासे में आता है।
देश का हर कोना भक्तिमय हो जाता है।
भादों की शुक्ल पक्ष बिनायक चतुर्थी को,
श्री गणेश का जन्मदिवस मनाया जाता है।
दो चतुर्थी लिए होता है हर चन्द्र मास।
चतुर्थी का प्रभु गणेश से संबन्ध है खास।
शुक्ल पक्ष विनायक व कृष्ण में संकष्टी हो,
भाद्रपद गणेश चतुर्थी लाए हर्षोल्लास।
उत्सव धूमधाम से दस दिवस तक चलता है।
गणपति घर में तो कहीं पंडाल में सजता है।
दसवें दिन गाजे-बाजे के संग जनसमूह,
गजानन की मूर्ति का जल-विसर्जन करता है।
चार बिधियों का होता है ये पूजा विधान।
सर्व प्रथम होता है मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठान।
शोडोषोपचार विधि उपरांत उत्तरपूजा,
अंतिम होता है गणपति विसर्जन अनुष्ठान।
ब्रह्मा हैं समस्त ब्रह्मांड के सृजनकर्ता।
विष्णु संसार के समस्त प्राणियों के भर्ता।
शिवशंकर भोले भंडारी हैं संहर्ता,
गणपति है समस्त ब्रह्मांड के विघ्नहर्ता।-
ज़रा सुनिए तो—
, मंडोत्रा दे मुक्तक
कवि कहाणे जो तेरा हाण भी नीं।
तेरियां कवतां च इतणी काण भी नीं।
जोड़ - जुगाड़ दा जमाना है भगता,
तेरी पुछ भी नीं कनै पछाण भी नीं।-
ग़ज़ल
मेरे गीतों को तुम सुर दे देना।
या मुझ को गाने के गुर दे देना।
पड़ रही हैं लोगों के बीच दरारें,
सबको जो जोड़े वो पुल दे देना।
मैल मिटा दे मन का, जिसकी खुश्बू,
दाता भेंट मुझे वो गुल दे देना।
जिसको चख कर तेरे ही गुण गाऊं,
ईश-प्रसाद स्वरूप वो गुड़ दे देना।
अपने सारे फ़र्ज़ निभा कर जाऊं,
बस तब तक सांसों को खुल दे देना।
रुखसत की बेला में न उठे पीड़ा,
जो पुण्य जमा हों, फल कुल दे देना।-
शिक्षक दिवस पर
अज्ञान का अंधेरा हटाया जाए।
आओ शिक्षक दिवस मनाया जाए।
शिक्षक व माँ-बाप चाहें तो नस्लों को,
मुमकिन ही नहीं, जो बरगलाया जाए।
सरकारी स्कूल बन गए उजड़े चमन,
क्यों न उन्हें फिर से बसाया जाए।
खोजों के इस युग में राहें हैं अनेक,
सही दिशा में कारवां बढ़ाया जाए।
ये दुनिया तो खुद ही बदल जाएगी,
पहले बदल कर खुद को दिखाया जाए।-
ज़रा सुनिए तो ―
ग़ज़ल
दोहरा जीना कभी आता नहीं मुझ को
एक मुख पर दूसरा भाता नहीं मुझ को
रंग हरदम ही बदलना लाजिमी है क्या?
कोई क्यों ये ठीक से समझाता नहीं मुझ को
पर्यटक सा बन गया हूँ कुछ दिनों से मैं
अब पते पर कोई भी पाता नहीं मुझ को
लत लगा कर रूठने की मुद्दतों से वो
अब मनाने के लिए आता नहीं मुझको
इश्क का नाता उमर से है तभी तो वो
कूदने को आग उकसाता नहीं मुझ को
कत्ल उसने अब तलक तो कर दिया होता
पर कभी गफलत में वह पाता नहीं मुझ को-
ज़रा सुनिए तो—
अज्जकल
हालत तिसा दी माड़ी भगता।
मिलदी नीं है नाड़ी भगता।
हुण मात्र किछ बरिह्यां दी ही,
है परौह्णी पहाड़ी भगता।-
ज़रा सुनिए तो—
अज्जकल
लोक अप्पू जो सरांहदे भगता।
मुल दूजे दा, घट लगांदे भगता।
फैसला तां बग्ते ही करना है,
कुण कुस पासें हन्न जांदे भगता।-