गुमान अपनी बादशाहत का, दिखाऊँ भी तो किस पर।
यहाँ हर शख़्स का कंधा, मेरे तख़्त की बुनियाद है।-
हमारी बादशाहत हमारे दुश्मनों से पूछो,
हमने दुश्मनी भी दुश्मनों को महंगी पड़ी हैं...!-
तेरा मुझपे कुछ यूं करम हो गया,
देखते ही देखते मेरी ज़िंदगी से
हर रंज-ओ-ग़म दूर हो गया,
सर-ब-सज्दा जो किया तेरे दर पर,
मुकद्दर से गिला ख़तम हो गया,
जब बिकी नही थी, कोई पूछता ना था,
जब से बिकी हूँ इश्क़-ए-खुदा में,
दुनिया ऐ ईल्मो-फन में मेरा नाम हो गया,
मैं तो फ़कीर की नगरी में रहती थी,
वो बादशाहत बख्श दी है
तूने मुझे मेरे किरदार में कि ,
हर दिल की नगरी में,
इरफान-ए-मोहब्बत का आलम हो गया ।-
जम्हूरियत के सियासी गलियारों में बगावत पुरज़ोर है
बादशाहत में, अदावत करने पर सर क़लम हो जाते थे-
तेरे दिल की सियासत में, मेरी बादशाहत कायम हैं....
मैं तेरा बादशाह हूँ, तू मेरी बेगम हैं....!-
बादशाहत दुनिया मे क्या करना हैं,
कभी अपनी बादशाहत दिलो में करके तो देखो....!-
कोई बादशाहों से कह दो, हम भी कलम पे धार रखतें है।
हमें खून ख़राबा पंसद नहीं, हम तो रूह पर वार करतें है।
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आप क्या गयें हमारी तो कलम रोने लगी,
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मेरे वजूद को पल में धुँआ कर दिया
मंजिलों पे था, मुझे कुँआ कर दिया,
बादशाहत ठुकराई जिनके लिए मैंने,
एक आने के लिए उसने रुसवा कर दिया।
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गैरो से हासिल करे...वो धन दौलत किस काम की,
खुद की नींव से रचा बुलंदी , बादशाहत मिल जायेगी !!
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