निकल पड़ता हूँ मैं, शांति की खोज में
जब भी वो नहीं आती, बर्तन मुझे धोने पड़ते हैं।-
बर्तनों का बच्चों सा ख़याल रखती है
एक एक चम्मच भी सम्भाल रखती है-
खुदा कैसी खता है ये-
सुबह,टूटे बर्तन हर रोज,
मेरी रसोई में,भरे हुए मिलते है।-
तुम अरमानी की नीली जैकेट सी प्रिये,
मैं देसी पायजामे का नाड़ा हूँ,
तुम जो दिखो..स्टेटस सिंबल हो,
मैं जो दिखूँ..नाक कटाता हूँ।
- साकेत गर्ग
(Full poem in caption)-
भारती शर्मा के पास एक जॉब का ऑफर आया।
भारती ने जॉब जॉइन करली...!
...और आज वो ढाबे पर, लोगों के झूठे बर्तन
धोते धोते थक गई है।😝
Every night, bharti😪 👇👇👇👇-
मेरे हाथों में हथौड़ा , बर्तन नहीं
कलम थमा दो ना बाबा ..
मेरे कंधों पर मजदूरी का बोझ नहीं
स्कूल का बस्ता दे दो ना बाबा । ..
मैं उड़ना चाहता हूँ
मैं भागना चाहता हूँ ,
सफलता की दौड़ में ।
मेरा स्कूल में दाखिला दिलवा दो ना बाबा ..
कलम थमा दो ना बाबा ...
नहीं चाहिए मुझे खिलौने ।
नहीं चाहिए रंग बिरंगे गुब्बारे भी ।
एक वक्त का भोजन भी चलेगा ।
मेरी आंखों में जो सपने चमक रहे हैं
उन में रंग भरने दो ना बाबा ।
कलम थमा दो ना बाबा ...
दाखिला दिलवा दो ना बाबा ...-
पुराने दराज में
मिल गया बचपन
कुछ गुड़िया की साड़ियाँ
कुछ बर्तन-
गर बर्तन पर नाम लिखने वाली
मशीन ना होती तो
ना जाने आज कितने परिवार
साथ होते-
न जाने क्यों पर अब तुम नही हो
न जाने क्यों मगर बर्तन उतने ही लगते हैं-