ये फुर्सत हमें किस देहलीज पे ला कर छोड़ गई
हम सोए नहीं मगर रात थक कर सो गई ...-
मर जाऊं
कशमकश, है जिधर जाऊं मायूसी की गर्द है मुझ पर
बेज़ार है, सभी किधर जाऊं छू ले ज़रा, मैं निखर जाऊं
तेरे इशारे पर, भी मुस्तैद हूँ सितम और बाकी तो नही
सुन ले मुझे, मैं संवर जाऊं है बला कोई, मैं गुज़र जाऊं
मुम्किन नही, राज़ी हो सभी हसरतें मेरी सब खाक हुई
कैसे टुकड़ो में बिखर जाऊं तेरी हो आरज़ू, ठहर जाऊं
रिश्तों का कीचड़ है, पसरा ज़िंदगी फुर्सत भी दे, 'राज',
बन कर कमल, उभर जाऊं वक़्त मिले, कभी मर जाऊं
Dr. Rajnish kumar
(Raj4ever)-
जाने के बाद मेरे
फुर्सत मिली उसको ,
एक अरसे से हमने
बेचैन कर रखा था !-
कुछ फुर्सत के पल दे जिंदगी
थोड़ा खुद से मिल लूँ मैं
आम के पेड़ पर झुले की पींगे
सखियों के संग खेली लुकाछिपी
इन सपनों को थोड़ा जी लूँ मैं
कुछ फुर्सत के पल दे जिंदगी...
माँ और भैया का लाड़ दुलार
दीदी की वो प्यारी सी फटकार
अंकों में अपने भर लूँ मैं
कुछ फुर्सत के पल दे जिंदगी...
बचपन का वो अल्हड़पन और
स्कूल कालेज की नादान मस्तियां
वो बेफिक्री के लम्हे फिर से जी लूँ मैं
कुछ फुर्सत के पल दे जिंदगी...
जीवनसंघर्ष के चक्रव्यूह से निकल
उन्मुक्त ख्यालों की उड़ान भर
कुछ पल खुद को भी दे लूँ मैं
कुछ फुर्सत के पल दे जिंदगी....
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मिलना कभी फुर्सत से तो बताएंगे, सितम कितने ढाए हैं हम
वक्त पर तू तो ना मिली, इसलिए तेरी सहेली को बताएं हैं हम-
वक़्त ना रुका, ना रुकेगा किसी के लिए
वक़्त ना झुका, ना झुकेगा किसी के लिए
इन्सान ही है नादान जिसने ना की कद्र इसकी
कभी चला, कभी ठहरा, किसी - किसी के लिए
मौके मिले इसे बहुत फ़िर भी अन्जान बना रहा
कभी गूंगा, कभी बहरा है ये, हर किसी के लिए
जो पाया है वो मिट्टी में मिल जायेगा इक दिन
क्यूँ जीता, क्यूँ मरता है इन्सान, किसी के लिए
थोड़ी फ़ुर्सत निकाल और लोगों से मिल "आरिफ़"
ना ही अच्छा, और ना ही बुरा है तू किसी के लिए
कलम का ज़ोर तो देखो "कोरे कागज़" पर लोगों
क़ातिल घर में, सड़क पर पहरा है, किसी के लिए।-
अभी मसरूफ बहुत है " साहिबा ",
फुर्सत मिलते ही बेहिसाब इश्क करेगी!-
खामोशियाँ हमारी
हमसे ही
रूठ गई इस कदर ,
कहती हैं -
वक्त मिले तो बताना,
फुर्सत से शिकायतें करूँ।।-
तुम जो फुर्सत में मुझे लिखने की कोशिश करते हो
तुम लिख पाते नही, लिखने की कोशिशों को सहला आते हो ।।-