सर रखकर तेरी गोद में माँ
जब भी सो जाती हूँ ...
झलक जाती हैं आँखे तेरी
अलकनंदा और भागीरथी सी ...
गिरती है कुछ बूंदें मुझ पर और
पुरा हो जाता है कुंभ का शाही स्नान ....-
सब कुछ ही तो जल गया, विरह की इस आग में
बस बची हुई हो तुम, दिल में दिमाग में
क्या थे क्या हो गये, तुम्हारे अनुराग में
स्मृतियों की सुरभि है बची, प्रेम के इस बाग में
निर्मल अश्रु धारा है, प्रेम के प्रयाग में
कुम्भ स्नान कर जाना, आ कर तुम इस माघ में
मिलेंगे हम तुम फिर से, कहानी के अगले भाग में
उम्मीद की ज्योति जल रही, प्रेम के चिराग में-
अपनी आह से निकल कर
तेरी चाह में आता हूँ
मैं साइबेरियन पक्षी हूँ
तू प्रयाग सर्द है-
उमड़ रही है जाह्नवी जटा शिव का दुलार चाहिए
प्यार बेहिसाब तो ठीक थोड़ा डाँट और फटकार चाहिये
धवल ग्लेशियर हिमाद्रि जुन्हाई स्फुरित गंगोत्री
पिघल रही हौले हौले कर्ण गुंजन रश्मि गान चाहिये
बह निकली हरिद्वार से मिलने प्रयाग सखी जमुना के गले
शीतल निर्मल पावन जल को मंत्रों का प्रवाह चाहिये
पावन करती धरती बहती काशी विश्वनाथ चली
घाट मंदिर घंटी आरती चंदन धूप शंखनाद चाहिये
पहुंची अब जिसके लिये उतरी इहलोक गंगासागर
गयी खो पी में वार तन मन धन कुछ ना चाहिये-
कलम का भी
अपना सार हैं
हर पन्ने पर
चलता इसका प्रयाग हैं
शिक्षा और महत्ता में भी
इसका अनूठा ही हाथ है
जिन्होंने समझा इसकी महत्ता को
वो अपने आप में विश्वविख्यात हैं
-
रचना की लय जानने के लिये वीडियो देख सकते जिसका लिंक मेरे प्रोफाइल पर उपलब्ध है 👍
-
दारागंज का दशाश्वमेध घाट,खुशरोबाग की
ऐतिहासिकता,सिविल लाइन्स का काफी हाउस,
प्रयाग विश्वविद्यालय का सेनेट हाल,वहाँ की राजनैतिक
सरगर्मियां ....सब पर भारी मेरे प्रयागराज की ये खूबियाँ ...!!-
करते होगें फरिश्ते भी दुआ,
मिल जाएँ जमीं पर ठौर कहीं
जहाँ मिलें गंगा, यमुना, सरस्वती
उस प्रयाग-सी नगरी और नहीं-
मिलती हैं नदियाँ दो जिसमें, पर होता दिलों का संगम है ।
घाट सरस्वती की शांति और मनता कुंभ विहंगम है।।
अकबर का किला, संग अक्षय वट, लेटे हनुमान तट, हैं विशेष।
हनुमान-भीष्म, ब्रह्मचर्य प्रतीक, शहर बीच, देते इंद्रिय वश का संदेश।।
आनंद भवन, आज़ाद पार्क, वो नीम पेड़, देते आज़ादी की खूशबू।
खुसरो बाग, भारद्वाज आश्रम और घाट अरैल, लाते संस्कृति की सोंधी बू।।
गौतम, संगीत और दर्पण का कुछ ऐसा मेल निराला था।
चंद्रलोक, निरंजन, राजकरण को जिसने मिल पछाड़ा था।।
हाई कोर्ट और यूनिवर्सिटी ने सबको दिया सहारा है।
पर मेरी किस्मत ने मुझको ये, शहर सर्वोच्च कोर्ट से पुकारा है।।
साहित्य संस्कृति की ये नगरी, जन्में इसने ढेर रतन।
बच्चन, मुद्गल या चौरसिया, पाया सबने यहीं जनम।।
रहते हैं सूख शांति से हम, लालच ना व्यापार बहुत।
'अमें यार' की बोली अपनी अमरूदी है प्यार बहुत।।
नाम खुदा के जैसा था पहले अब चढ़ा सियासी रंग।
था प्रयाग ये इलाहाबाद, अब फिर प्रयाग, पर राज संग।।-
भी एक अजीब पहेली की तरह है,
पास हो तो लगता है डर तुम्हे खोने का,
पास नहीं तो लगता है जैसे साथ हो उम्र भर का।।-