भले डांट घर में तू बीबी की खाना, भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना, मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमतें है
लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
भले डांट घर में तू बीबी की खाना,
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना,
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमतें है-
युग को समझ न पाते जिनके भूसा भरे दिमाग़
लगा रही जिनकी नादानी पानी में भी आग-
देखो ये गुण्डा गर्दी।
हैल्मिट-कागज़ के नामों पर,
अंधाधुन चली वसूली।
दस रुपया का दस दिनों मास्क,
बचा पुलिस से लेता खाली।
पेट पालने को बस दिखती,
इन्हें गरीबों की थाली।
चमक सितारों की पैसों से,
यह है चोरों की वर्दी।
देखो ये गुण्डा गर्दी। देखो ये गुण्डा गर्दी।
धमकाते है खाकी वाले,
पीड़ित के घर वालों को।
चीखें चीख चीख मर जाती
ये बचाते हलालो को।
साक्ष जलाने में है माहिर,
भस्म करते सवालों को।
मानवता को बेच चुकी जो,
है ये भक्षक की वर्दी।
देखो ये गुण्डा गर्दी। देखो ये गुण्डा गर्दी।
ड्राइवर इनका बदलो यार,
गाड़ी रोज़ पलटती है।
विधायक जी के इशारों पर,
गाड़ी इनकी चलती है।
महंगाई के युग में खाकी,
सबसे सस्ती बिकती है।
लम्बे हाथ कट गए है ये,
लम्बी जेबों की वर्दी।
देखो ये गुण्डा गर्दी। देखो ये गुण्डा गर्दी।-
अब तक के जीवन में पहली बार देख रहा हूँ 😎
👇
पुलिस सुरक्षा माँग रही है .....!
और वकील न्याय माँग रहे हैं.....! 😊😂😊-
"पुलिस ने जो किया फिलहाल तो अच्छा किया!!"✔👍
लेकिन सजा देने का अधिकार पुलिस का नहीं है!
इस मामले के अतिरिक्त पुलिस हर मामले में सही नहीं हो सकती है। अगर इस तरह के अपराध को रोकना है तो न्यायिक प्रणाली को तेज करना पड़ेगा । "पूरी न्यायिक प्रणाली और अंतिम सजा के लागू करने तक की समय सीमा तय करनी पड़ेगी।" तभी अपराधों पर रोक लग सकेगी।
न्याय और बदले का अंतर मिटता जा रहा है, संविधान की भी ज़रूरत किसी को महसूस नहीं हो रही है !!
हैदराबाद के आरोपियों का ट्रायल आप फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाते तो महीने भर में भी फैसला बाहर आ जाता! ( इंदौर में पिछले साल मात्र 23 दिन में छोटी बच्ची से बलात्कार के मामले में फाँसी की सजा सुनाई गई हैं ) .....इसलिए यह कहना बन्द कर दीजिए कि इंसाफ जल्दी नही दिया जा सकता .........इच्छा शक्ति हो तो सब सम्भव है......!!
लेकिन अब न्यायतंत्र की अपेक्षा हमे भीड़तंत्र पर ज्यादा भरोसा होने लगा है,यह खतरनाक संकेत है!
यह कोई समाधान नही है! हम सभ्यता की दौड़ में आगे नही बढ़ रहे हैं बल्कि पीछे की ओर जा रहे हैं! हम आधुनिक बन रहे हैं, लेकिन हमारी सोच बर्बर हो रही है!
वैसे आपको यदि लग रहा है है कि अब से सब बदल जाएगा तो ऐसा कुछ नही है!!,...
आगे भी अगर कानून प्रक्रिया सही नहीं रही तो बलात्कार पीड़िता को कभी ट्रक कुचलेगा तो कभी चलते रास्ते उसे आग के हवाले कर दिया जाएगा...😓-
माहौल कुछ ऐसा हर किसी पर सवार है हिंसा
सब को चाहिए सुरक्षा ,एक दूसरे पर करे हिंसा
मानवता भूल मानव मानव पे करे हिंसा
एक दूसरे की लड़ाई में तीसरे पे करे हिंसा
कैसे चले देश जहां नहीं कोई मेल
पुलिस वकील की लड़ाई में, जनता रही झेल
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सोता हूँ आजकल हेल्मेट पहनकर
ख़्वाब में मेरे ट्रैफिक पुलिस आती है।-
लॉकडाउन में एक शराब पीकर घूमने वाले एक
व्यक्ति को पुलिस पकड़कर ले गई। 300-400
लोगों की भीड़ भी उसके पीछे-पीछे थाने चली गई....
इतनी भारी भीड़ देखकर पुलिस ने उसको
कोई बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति समझकर तुरन्त
छोड़कर गलती के लिए माफ़ी भी माँग ली।
थाने से बाहर निकलकर उसने सबको सहयोग
करने के लिये धन्यवाद दिया.. इतने में ही
भीड़ बोली.. भाड़ में गया तेरा धन्यवाद....
"तू तो बस ये बता कि मिल कहाँ रही है..?"-