अन्तहकरण की पीड़ा हटती नहीँ
स्वयं की नजर से गिरा यूँ कि उठता नहीँ
जाऊ कहाँ सुकून कहीं मिलता नहीँ
आवेश उठे कदम ने छिन सब कुछ लिया
जीता हूँ पर मैं हूँ जिंदा नहीं
क्रोध की रथ पर सवार काल होता है
जो पीये विष को वो पल- पल मरता नहीं
जाये जहाँ उसे सुकून कहीं मिलता नहीँ
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वीरान राह में चल पड़े है कदम
पता नहीं कहाँ जाकर रुकेंगे हम
चोट ऐसी खायी है किसी अपने से
छाले भी घाव के ना हो रहें नरम
जीवन की आस खो चलें हैं धर्य
वजह ढूंढ रहे हैं साँसों के मरहम
विश्वास की डोर से बँधकर चला
धागे तोड़ गया वक़्त बेरहम
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तुम मेरा अपमान कर लेना
मैं तुम्हे सम्मान दे दूंगी
तुम्हारी नादानियों को इस तरह
मैं पूर्ण विराम दे दूँगी
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प्रेम शब्द मे जो "आधा" अक्षर है वो जीवन के एक गहरे दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है।ये सुचित करता है की दो व्यक्ति यधपि भावनाओं के सेतु से जुड़े रहेंगे, परन्तु उनका प्रेम सदैव अधुरा रहेगा,पुर्णता से दुर। इसलिए ये वेदना और विरह का पर्यायवाची बनता है। प्रेम खतरे का अंतिम शिखर है। इस कारण से हीं ये विशिष्ट है एवं श्रृष्टि का उच्चतम सौंदर्य है।
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अंतिम संस्कार भी सरकारों को करवाना पड रहा है।
भारतीय समाज में जो एकता के खोखले दावे हो रहे थे।
उनकी पोल खुल चुकी है।
अब हमारे लोग पुर्ण रूप से अग्रेंज बन चुके है।-
पतझड़ के आगमन ने
झड़ दिये पुराने पत्ते
सुनी हो गयी टहनियां
झड़ गये नन्हो के घोंसले
बसंत ऋतु के आगमन से
खिल उठे वन- उपवन
प्रकृती कर रही स्वागतम
पल्लवित हो नये पत्ते
सुगंधित है वातावरण
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प्रेम मे सबसे सुंदर किरदार है
एक प्रतीक्षारत स्त्री का... किंतु
उससे कही ज्यादा खूबसूरत है उस
इंतज़ार का मान रखने वाला वो पुरुष
जिसने स्त्री के पुर्ण समर्पित प्रेम
को, पुर्ण समर्पण हृदय से स्वीकार किया...!!-
तुम हमेशा कुछ अधूरे रहो,
हमेशा कुछ खाली रहो;
क्यूंकि सिर्फ इसी को
हम भर सकते है,
इसी को पूरा कर सकते है;
क्यूंकि पूर्ण में कुछ नहीं समा
सकता,
कुछ ना जानना भी, सब जानने से बेहतर होता है-
भल्या पहाटे सारून
पांघरूण बाजुला रात्रीचं
नाविन्याची अंघोळ अन् त्यात
मागण एकच पुर्णत्वाचं.-सुयश;-
मेरी तलब के तक़ाज़े पे थोड़ा ग़ौर तो कर,
मैं तेरे पास आया हूं ख़ुदा के होते हुए!
-क़ाज़िम हुसैन-