कई स्त्रियां दफ़न है
पुरुषों के हृदय में
और मस्तिष्क
मिथ्या अभिमान
से लबालब है
दरअसल पुरुष
पुरुषार्थ नहीं
अपने पुरुषत्व का
दास है-
जब समर ही है निर्णय तो मैं प्राण लेके आया हूँ
सहस्त्रों से लड़ने बस एक बाण लेके आया हूँ।।-
धूप अगरबत्ती करके , चंद रुपये चढ़ा आता हूँ
टेक कर माथा,सब ख्वाहिशें अपनी बता आता हूँ
पुरुषार्थ से बच जाऊ,चमत्कार की उम्मीद जगाने जाता हूँ
भगवान पूजन के नाम पर मंदिर फ़क़त माँगने जाता हूँ-
"स्त्रियों" ने "प्रेम" में धैर्य चुना "अभि"
और "पुरुष" ने चुना "उतावलापन"।
प्रेम में स्त्रियों के हिस्से मद्धम-मद्धम आँच में जलना
आया और "पुरुषों" के हिस्से में आया "दीवानापन"।-
पुरुष ने प्रेम में "अभि" हारा अपना सब कुछ।
और "स्त्री" ने प्रेम में "वारा" अपना सब कुछ।-
सबकी हिस्से में आई उनकी मंज़िलें,
"अभि" मैं "इंतज़ार" करता रह गया।
लोगों ने मुझको बस "नफ़रतें" ही दी
और मैं सबको प्यार करता रह गया।-
पुरुष और पुरुषार्थ की बातें वो अब क्या ही
करें जिनके हृदय में नारी हेतु सम्मान नहीं।
नारी को डराकर, दबाकर के मर्दांगी दिखाने
वाले मेरे हिसाब से तू तो इंसान ही नहीं।-
एक पुरुष "अभि" प्रेम में अपनी पहचान खो देता हैं।
वो किसी का पति, किसी का प्रेमी, किसी का पिता, भाई बनकर रह जाता हैं।
आपका अभि ❤️-