स्वयं की वृति
तय करे कृति-
जल बरसे तो शांत हो जाए दावानल
पर अमृत भी क्या करे जो लगे बड़वानल-
मन के झरोखे से झांकते हुए एहसास
बाहरी दबाव में मर जाते हैं........
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समय और परिस्थिति सब कुछ बदल देते हैं |-
परिस्थितियाँ मनुष्य को कष्ट पहुँचा सकती हैं, धक्का दे सकती हैं, पर रगड़कर नष्ट नहीं कर सकतीं। मनुष्य परिस्थितियों से बड़ा है, बशर्ते वह 'मनुष्य' हो ! किसी तरह जीवित रहकर मरने की तैयारी करते रहनेवाला भुनगा नहीं
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मन बदलदो परिस्थितिया अगर नहीं बदली हैं
तो नजर को बदलदो नजारा बदल जाता हैं...
सोच को बदलदो सितारा बदल जाता हैं
औऱ कस्ती बदलने कि जरूरत नहीं
दिशा को बदलदो किनारा बदल जाता हैं-
हमारे द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया ही...
परिस्थितियों का मिज़ाज तय कर देते हैं
और हम अक्सर अचंभित हो जाते हैं
प्रतिकूल दशा का नूतन दृश्य देखकर!!-
समझने लगा हूँ
कि देवता हैं कौन।
हर परिस्थिति में
रहते जो मौन।-
कई बारी हमे ये एहसास ही नही होता है
की सामने वाला किस परिस्थिति से गुज़र रहा है।।-